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लोकसभा चुनाव : अहसास वोटर की ताकत का

चुनाव आयोग की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी 33 फीसद वोटर घरों से निकलते नहीं हैं। आजादी के सात दशक बाद भी लोक सभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत 67 फीसद से अधिक नहीं हो पा रहा है।
वर्ष भर मतदाता सूची में नाम जोडऩे की सुविधा व घर के निकट मतदान बूथ बनाने के बावजूद एकतिहाई मतदाता घर से निकलते नहीं हैं। आयोग की तरफ से मतदाता जागरूकता व मतदाता भागीदारी कार्यक्रम चल रहा है, जिसका मुख्य मकसद कम मतदान प्रतिशत का विश्लेषण करना तथा मतदान प्रतिशत बढ़ाना है। इस बार पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 97 करोड़ करीब पहुंच चुकी है। आयोग का निरंतर प्रयास है कि अधिक-से-अधिक संख्या में लोग अपने मतदान का प्रयोग करें।
आयोग ने अपनी बेवसाइट के माध्यम से मतदाता खोज से लेकर शिकायत दर्ज कराने तक की व्यवस्था की है। पहले लोग शिकायत करते थे कि मतदान केंद्र बहुत दूर है या वहां तक पहुंचने की उचित व्यवस्था नहीं है, जिसके लिए आयोग ने ज्यादा से ज्यादा बूथ बनाकर सुविधाजनक कर दिया। जहां दस मतदाता भी हैं, वहां विशेषकर बूथ बनाये जाते हैं। इस सब में भारी व्यवस्था व मानवश्रम लगता है। देखने में आता है कि शहरी व शिक्षित वर्ग मतदान के प्रति विशेष अरुचि रखता है।
ढेरों लोग मतदान दिवस के अवकाश को मनोरंजन का दिन बना लेते हैं। यह सच है कि बुजुर्ग और अकेले रह रहे लोग बिना किसी सहयोग के बाहर नहीं निकल सकते। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें उम्मीदवार पसंद नहीं या उनके प्रति किसी तरह का असंतोष है, वे भी नाराजगी व्यक्त करने के कारण मतदान का इस्तेमाल नहीं करते। हालांकि अब नोटा यानी कोई भी उम्मीदवार न पसंद होने पर प्रयोग किया जाने वाला विकल्प है।
इसलिए वे इसका प्रयोग करने को स्वतंत्र हैं। कुछ अन्य राजनीतिक दलों के रवैये से असंतुष्ट होते हैं। क्योंकि एक बार चुन लिये जाने के बाद विजेता की कोई जवाबदेही नहीं रह जाती। जिससे नाराज लोग विरोध स्वरूप वोट नहीं देते। कारण कुछ भी हो परंतु अपने बहुमूल्य वोट के महत्त्व को समझना होगा वरना जैसी व्यवस्था चल रही है, वैसे ही चलती रहेगी। उसे बदलने का इख्तियार सिर्फ मतदाता के पास है, इसका अहसास होना जरूरी है। जनता का भरोसा जीतने के लिए चुनाव पारदर्शी हों और अपराधियों पर अंकुश लगे, यह भी ख्याल रखा जाए।

सौजन्य से राष्ट्रीय न्यूज़ सर्विस

Chauri Chaura Times

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