वेद वाणी

यदि हम अपने स्वरूप व उद्देश्य को न भूलें, तो नियमित जीवन और स्वाध्याय को अवश्य अपनायेगें!

यदि हम अपने स्वरूप व उद्देश्य को न भूलें, तो नियमित जीवन और स्वाध्याय को अवश्य अपनायेगें!
(अग्ने ब्रह्म गृभ्णीष्व धरुणमस्यन्तरिक्षं दृह ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि सजातवन्युपदधामि भ्रातृव्यस्य वधाय! धर्त्रमसि दिवदृह ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि भ्रातृव्यस्य वधाय! विश्वाभ्यस्त्वाशाभ्यऽउपदधामि चित्तं स्थोध्वर्चितो भृगूणामङ्गिरसा तपसा तप्यध्वम्!) यजु -१-१८
व्याख्या हे उन्नतिशील जीव! तू ब्रह्म ज्ञान का गृहण कर! ज्ञान ही सब उन्नतियों का मूल है! २- धरुणमस्यन्तरिक्षं दृह तू अत्यंत धैर्य वृत्ति वाला है, अपने को दृढ बना! अन्त:करण का सर्वमहान गुण धृति ही है! यह धर्म के दस अंगों की नींव है!
३- धृति द्वारा अन्त:करण का स्वास्थ्य का सम्पादन करने वाले ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि सजातवन्युपदधामि तुझ ज्ञान का सेवन करने वाले, बल का सेवन करने वाले, यज्ञ का सेवन करने वाले मै अपने समीप स्थापित करता हूँ! जिससे तू भ्रातृव्यस्य वधाय शत्रुओं के वध के लिए समर्थ हो! ४- धर्त्रमसि दिवदृह तू धारक शक्ति से युक्त तेरी स्मरण शक्ति प्रबल है, तू अपने मस्तिष्करूप द्युलोक को दृढ बना! ऐसा ज्ञान ही मस्तिष्क को उज्जवल बनायेगा! ब्रह्मवनि त्वा उपदधामि भ्रातृव्यस्य वधाय ज्ञान का सेवन करने वाले तूझे मै अपने समीप स्थापित करता हूँ, जिससे तू कामादि शत्रुओं के वध के लिए, समर्थ हो! ५ – वस्तुत: जब मनुष्य शरीर, हृदय मस्तिष्क सभी को दृढ बना लेता है तब प्रभु उपासना के लिए पूर्णतः तैयार हो चुकता है! त्वा विश्वाभ्यस्त्वाशाभ्यऽउपदधामि इस तूझे मै सब दिशाओं से समीप स्थापित करता हूँ! यह व्यक्ति इन्द्रियों को केन्द्रित करके प्रभु में एकाग्र होने का प्रयास करता है! ६- हे जीव! चित्त:स्थ उधर्व चित: भृगूणामङ्गिरसा तपसा तप्यध्वम् तुम चेतन हो, वरन् उत्कृष्ट चेतना वाले हो, अतः अपने हित को समझते हुए ज्ञान परिपक्व लोगों के जिसके अंग प्रत्यङ्ग लचक वाले हो उनके तप से तप करने वाले बनो! भृगु का तप ही स्वाध्याय है, तथा अङ्गिरस लोगों का तप ऋत् है! तुम अपने जीवन को नैत्यिक स्वाध्याय वाला बनाओ तथा तुम्हारा प्रत्येक कार्य ठीक समय पर ठीक स्थान पर हो, जिससे तुम भृगुओं की भांति ज्ञानी तथा अङ्गिरसो की भांति स्वास्थ्य की दीप्ति वाले बन सको!
मन्त्र का भाव है कि- ज्ञान की दृष्टि से हे जीव! तुम ऋषि बनो और बल की दृष्टि से एक मल्ल बनो, यही तो आदर्श पुरुष है,नियमित स्वाध्याय से अपने जीवन को समुन्नत बनाओ

सुमन भल्ला

Chauri Chaura Times

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