जब हम वेद माता को अपनाते है, स्वाध्याय करते हैं तो हमारा अन्त:करण प्रकाशित हो उठता है! प्राणशक्ति की वृद्धि से सब मल दूर हो जाते हैं और उपासक प्रकाशित हो उठता है और उपासक अन्तर्ज्योति प्रभु को देखता है!
जब हम वेद माता को अपनाते है, स्वाध्याय करते हैं तो हमारा अन्त:करण प्रकाशित हो उठता है! प्राणशक्ति की वृद्धि से सब मल दूर हो जाते हैं और उपासक प्रकाशित हो उठता है और उपासक अन्तर्ज्योति प्रभु को देखता है!
(अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती! व्यख्यन् महिषो दिवम्!) यजु ३-७
व्याख्या वेद माता को अपनाने से, वेद वाणी के स्वाध्याय से इस वेदमातृभक्त
के अंदर अन्त:करण में रोचना चरति ज्ञान की ज्योति प्रस्तुत होती है! अर्थात इसका अन्त:करण ज्ञान ज्योति से जगमगा उठता है! २- यह रोचना
ज्ञान दीप्ति विषयो के सात्विक रुप का दर्शन कराकर इसे विषयासक्त से बचाती है! विषयासक्तियों से बचाव इसकी प्राण शक्ति की वृद्धि का कारण बनता है!
प्राणात् अपानती प्राणशक्ति के द्वारा यह रोचना अपने जीवन में में सब दोषों को दूर करती है
इसका जीवन निर्मल हो जाता है, केवल शरीर ही नहीं इसके मन और मस्तिष्क दोनों स्वस्थ हो जातें हैं!
३- सब मलों से दूर हुआ यह महिष: प्रभु का पुजारी दिवम् उस हृदयस्थ दैदीप्यमान ज्योति को व्यख्यन विशेष रूप से देखता है मल के आवरण ने उस ज्योति को इससे छिपाया हुआ था! जब आवरण हटा तब ज्योति का प्रकाश होता है! मन्त्र का भाव है- हम वेद माता को अपनाये और वेद वाणी का स्वाध्याय कर अपने अत:करण को प्रकाशित करें प्राणशक्ति के वृद्धि से सब मल दूर हो जातें हैं और उपासक अपनी अन्तर्ज्योति प्रभु को देखता है, उसे पा लेता है
सुमन भल्ला