हमें सात्विक भोजन- शहद दूध आदि उत्तम पदार्थ देव प्राप्ति के योग्य और दिव्य गुण वाला बनाते हैं!
हमें सात्विक भोजन- शहद दूध आदि उत्तम पदार्थ देव प्राप्ति के योग्य और दिव्य गुण वाला बनाते हैं!
( अभि ते मधुना पयोऽथर्वाणो अशिश्रयु:! देवं देवाय देवयु: !) साम६५२-२
व्याख्या जिस मनुष्य को जीवन के उद्देश्य का स्मरण रहता है वह इस मार्ग पर निरंतर आगे बढा चला जाता है! उद्देश्य विस्मरण होते ही हम पथ – भ्रष्ट हो जाते हैं! परंतु ते अ- थर्राण: वे उन्नति के लिए कटिबद्ध नर तो डांवाडोल नहीं होतें! वे अथर्वा लोग अभि मधुना पय: अशिश्रयु: क्या भौतिक व क्या आध्यात्मिक – दोनों स्तरों पर मधु के साथ परस्पर का सेवन करते हैं!
मधु- पयस् मधु शहद का नाम है, जो सब औषधियों की सारभूत अत्यंत सात्विक वस्तु है! पयस् ओप्ययी वृद्धौ वृद्धि का साधन भूत दूध है! ताजा दूध तो साक्षात अमृत है, इसका सेवन आहार शुद्धौ सत्त्व शुद्धि; हमारे अन्त:करणो को शुद्ध बनाता है! सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृति: अन्त:करण की शुद्धि के परिणामस्वरूप हमारी स्मृति ठीक बनी रहती है! और हमें अपने जीवन का उद्देश्य भूलता नहीं है! मधु का अभिप्राय वाणी की मधुरता से भी है! हमारी जिह्वा से कोई कटु शब्द नहीं
निकलता है! जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वा मूले मधुलकम् इस वेद वाक्य के अनुसार हमारा प्रत्येक शब्द स्नेह और माधुर्य से सना होता है! इस वाणी के माधुर्य के साथ साथ सच्ची वृद्धि के साधन भूत पयस् ज्ञान का हम संचय करते हैं! यह ज्ञान हमारी इन्द्रियों को पवित्र बना कर हमें मार्ग भ्रष्ट नहीं होने देता है! केतपू: केतन न: पुनातु ज्ञान से पवित्र करने वाला प्रभु हमारे ज्ञान को और दीप्त करे, परंतु साथ ही वाचस्पति: वाचन न: स्वदतु: वाचस्पति प्रभु हमारी वाणी को स्वाद वाला बना दे! यही तो मधु- पयस् का सेवन है!
देवम् यह दिव्य भोजन है!
मधु- पयस् देवताओं से सेवित हो देव ही कहा जाने लगा! देवाय यह दिव्य भोजन हमें उस महान देव की प्राप्ति में सहायक होता है! देवयु: यह भोजन हमें देवों के साथ मिलने वाला है! इस भोजन के सेवन से हमारी दैवी सम्पत्ति का उचित विकास होगा! मन्त्र का भाव है कि- हमें सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए साथ ही मधु के साथ दूध का सेवन करने से हम दिव्य गुणों से युक्त हो जाते हैं वाणी भी मधु युक्त हो जाती है
सुमन भल्ला