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‘एक देश, एक चुनाव’ पर काम कर गए कोविंद

रामनाथ कोविंद कमेटी ने ‘एक देश, एक चुनावÓ पर अपनी सिफारिश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। पिछले साल 2 सितम्बर को पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अगुवाई में एक ताकतवर पैनल बनाया गया था।
गृहमंत्री अमित शाह भी इसके हिस्सा थे। तभी साफ हो गया था कि नरेन्द्र मोदी सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ पर हर हाल में आगे बढऩा चाहती है। तर्क यह है इससे साल दर साल देश के किसी न किसी हिस्से में होने वाले चुनाव, इसका बेतहाशा खर्च, आचार संहिता से प्रभावित होने वाले सरकार के अन्य नीतिगत फैसले और सुरक्षा एजेंसियों के लंबे समय तक इंगेज के नुकसान आदि से छुटकारा मिल जाएगा। बचे संसाधन एवं ताकत का इस्तेमाल विकास के कामों में किया जा सकेगा।
इन तथ्यों को मानते हुए छोटे दल ‘एक चुनाव’ पर सहमत नहीं थे तो देश के संघीय ढांचे पर पडऩे वाले चोट की वजह से। उन्हें डर है कि इससे उनकी विधायी एवं संसदीय प्रतिनिधित्व का नुकसान होगा, जो अलग चुनाव में बना रहता आया है। पर यह डर फिजूल है क्योंकि 1967 से इसी व्यवस्था में छोटे दलों का कुछेक राज्यों में सत्ता थी। कोविंद की टीम ने इन मतभेदों और आलोचनाओं का बहुमत के आधार पर हल करने की कोशिश की है।
फिर तो माना जाए कि इसे आसानी से लागू कर लिया जाएगा। नहीं, इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा। पहले चरण में लोक सभा और सभी विधानसभा चुनाव  साथ कराएं जाएंगे और इसके लिए राज्यों से मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। संविधान संशोधन के दूसरे चरण में लोक सभा, विधानसभा के साथ स्थानीय निकाय चुनाव हों। कोविंद कमेटी की ये भी सिफारिश है कि तीन स्तरीय चुनाव के लिए एक मतदाता सूची, फोटो पहचान पत्र जरूरी होगा।
इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन की जरूरत होगी, जिसमें कम से कम आधे राज्यों की मंजूरी चाहिए। साथ ही मध्यावधि चुनाव के बाद गठित होने वाली लोक सभा या विधानसभा का कार्यकाल उतना ही होगा, जितना लोक सभा का बचा हुआ कार्यकाल रहेगा।
32 राजनीतिक दल तो एक साथ सारे चुनावों के पक्ष में हैं, लेकिन कांग्रेस और टीएमसी समेत 15 दल इससे सहमत नहीं हैं। लोकतंत्र बहुमत से चलता है, फिर भी अधिकतम को साधने का प्रयास करना चाहिए।

सौजन्य से राष्ट्रीय न्यूज़ सर्विस

Chauri Chaura Times

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