वेद वाणी

शुद्ध जलों से जिन औषधियों में रस का सञ्चालन हुआ है, उन औषधियों के प्रयोग से हम अपने शरीर व मानसिक बल को बढायें, क्रियाशील व मधुर जीवन वाला बनें!

शुद्ध जलों से जिन औषधियों में रस का सञ्चालन हुआ है, उन औषधियों के प्रयोग से हम अपने शरीर व मानसिक बल को बढायें, क्रियाशील व मधुर जीवन वाला बनें!
(देवस्य त्वा सवितु: प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्;! स वपामि समापऽओषधिभि: समोषधयो रसेन! सरेवतीर्जगत्तीभि: पृचयन्ता स मधुमतीर्मधुमतीभि: पृच्यन्ताम्!) यजु १-२१
व्याख्या धान्य का प्रयोग कैसे किया जाय?
१-* त्वा सवितु: देवस्य प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां* तेरा तुझ धान्य का सबके प्रेरक दिव्य गुणों के पुञ्ज प्रभु के प्रसव में प्रभु की अनुज्ञा का उपयोग करता हूँ! इस धान्य का न अतियोग करता हूँ, न अयोग करता हूँ! अपितु यथायोग्य करता हूँ! पूषा के हाथों से ग्रहण करता हूँ! प्राणपानों के हाथों से ग्रहण करता हूँ!
२- जिन धान्य आदि औषधियों का प्रयोग करता हूँ उन्हें बडे उत्तम ढंग से बोता हूँ! * ओषधि: आप: सम्* इन औषधियों के साथ जल उत्तमता से सङ्गतहो, इनका सेवन उत्तम जल से हो! वृष्टि जल से सिक्त औषधियाँ सात्विक गुणों वाली होती है!गन्दे जल से उत्पन्न औषधियाँ तामस गुणों को जन्म देती है! ये‌ शुद्ध औषधियाँ गतिशील प्राणियों के साथ संयुक्त हो, इनका सेवन व्यक्ति को पुरुषार्थी बनाये! मधुरस से पूर्ण औषधियाँ प्रजाओं में संयुक्त होकर उन्हें मधुर बनायें!
संक्षेप में जिन धान्यों का हमें
प्रयोग करना है उन्हें हम उत्तमता से बोलें, सदा शुद्ध जल से सेचन करें तभी उनमें सात्विक रस की उत्पत्ति होगी! अमेध्य -प्रभव औषधियाँ शास्त्रों में अभक्ष्य मानी गई है! उनसे बुद्धि भी तामस बनती है उत्तम जल से सिक्त औषधियों का सेवन हमें क्रियाशील व मधुर स्वभाव वाला बनाती है!
मन्त्र का भाव है कि- शुद्ध जल द्वारा सिञ्चित औषधियों का हम प्रयोग करें वे हमें पुरुषार्थी एवं क्रियाशील मधुर जीवन वाला बनाती है

सुमन भल्ला

Chauri Chaura Times

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