वेद वाणी

स्वार्थ भावना के छूटने पर ही ऐहिक और आमुष्मिक कल्याण निर्भर करता है! इस स्वार्थ के समाप्त होते ही दिव्य गुणों का पोषण होता है और राक्षसी वृत्तियाँ दूर भागती है!

स्वार्थ भावना के छूटने पर ही ऐहिक और आमुष्मिक कल्याण निर्भर करता है! इस स्वार्थ के समाप्त होते ही दिव्य गुणों का पोषण होता है और राक्षसी वृत्तियाँ दूर भागती है!
(कस्त्वा विमुञ्चति स त्वा विमुञ्चति कस्मै त्वा विमुञ्चति तस्मै त्वा विमुञ्चति! पोषाय रक्षसां भागोऽसि यजु- २-२३
व्याख्या इस स्वार्थ भावना से प्रभु ही मुक्त करते हैं! प्रभु का स्तर करके प्रभु से अपना सम्बन्ध जोडकर मै स्वार्थ से ऊपर उठता हूँ! प्रभु स्मरण से हममें विश्व बन्धुत्व की भावना उत्पन्न होती है! अतः प्रस्तुत मंत्र में कहते हैं कि- क:त्वा विमुञ्चति वह आनन्दमय प्रभु तुझे स्वार्थ भावना से मुक्त करते हैं! २- स्वार्थ भावना से ऊपर उठने पर मनुष्य का ऐहिक जीवन सुखमय होता है! और आमुष्मिक जीवन का कल्याण भी सिद्ध होता है!
कस्मै त्वा विमुञ्चति आनन्द की प्राप्ति के लिए वे प्रभु तुझे वासनाओं से मुक्त करते हैं! ३- इस प्रकार स्वार्थ की भावना से ऊपर उठ जाने पर पोषाय तू अपने वास्तविक पोषण में समर्थ होता है! यह स्वार्थ असुरों का मुख्य गुण है, उसे नष्ट करके तू रक्षसाम् असि राक्षसी वृत्तियों का भाग: असि भगाने वाला है राक्षसी वृत्तियों से तू अपने से दूर कर देता है!    मन्त्र का भाव है कि- स्वार्थ भावना से उपर उठने पर दिव्य गुणों का पोषण होता है और राक्षसी वृत्तियाँ नष्ट होती है

सुमन भल्ला

Chauri Chaura Times

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button