वेद वाणी

हे मनुष्य! तू ज्ञानी बन! मार्ग को जानकर उसी पर चल! मन का पति बनकर यज्ञ के लिए त्याग कर! यज्ञों में उस प्रभु को अर्पित कर!

हे मनुष्य! तू ज्ञानी बन! मार्ग को जानकर उसी पर चल! मन का पति बनकर यज्ञ के लिए त्याग कर! यज्ञों में उस प्रभु को अर्पित कर!
(वेदोऽसि येन त्वं देव वेद देवेभ्यो वेदोऽभवस्तेन मह्यं वेदो भूया:! देवा गातुविदो गायों वित्तवा गातुमित! मनसस्पतऽइमं देव यज्ञ स्वाहा वाते धा: यजु २-२१
व्याख्या प्रभु अपने पुत्र से कहते हैं कि- वेद: असि तू ज्ञानी है, यही सर्व महान प्रेरणा है जो प्रभु द्वारा जीव को दी जाती है, तूझे संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं करना जो ज्ञानी को शोभा नही देता है! २- येन देव त्वम् देवेभ्य:वेद तेन वेद: अभव: क्योंकि हे ज्ञान ज्योति से जगमगाने वाले जीव! तू विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करता है, इसलिए तू ज्ञानी हुआ है! उत्तिष्ठत जागृत प्राप्त वरान् निबोधत् उठो जागो श्रेष्ठों को प्राप्त करके ज्ञानी बनो! यह उपनिषदों का उपदेश है!
स्वाध्याय, प्रवचन को तूझे कभी नहीं छोडना है, सब उत्तम कार्यों को करते हुए इसे सदा अपनाये रखना है!
स्वाध्याय ही परम तप है
३- मह्यम वेद भूया: मेरी प्राप्ति के लिए तूझे ज्ञान का पुञ्ज बनना है, ज्ञानी बनकर ही तू मुझे प्राप्त करेगा!
४- देवा:गातुविद: ज्ञान ज्योति से दीप्त होने वाले ज्ञानी लोग मार्ग को जानने वाले होते हैं! ज्ञानी पुरुष को अपना कर्तव्य मार्ग सुस्पष्ट दीखता है! ५ तुम गायों वित्तवा गातुं इत् मार्ग को जानकर मार्ग पर चलने वाले बनों! मनुष्य मार्ग से विचलित तब हुआ करता है जब वह अपने मन का पति नहीं होता है! अपने मन को वश में न करके व्यक्ति यह कह उठता है- जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति मुझे धर्म का ज्ञान तो है परंतु मैं उधर चल नहीं पाता हूँ! जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्ति मैं अधर्म को भी जानता हूँ परंतु उससे हट नहीं सकता हूँ! प्रभु कहते हैं कि ६- मनस्पते देव: इमम् यज्ञं स्वाहा हे मन के पति जीव! तू अपने मन को वश में कर और दिव्य गुणों वाला बना हुआ तू इस यज्ञ का लक्ष्य करके आत्मत्याग करने वाला बन! और वाते धा: तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायु: इस संसार शकट के चलाने वाले वायु नामक प्रभु में अपने को स्थापित कर! वे प्रभु ही वायु व वात गति देने वाले है! तू अपने द्वारा किये जाने वाले इन यज्ञों को भी प्रभु की शक्ति से सम्पन्न होता हुआ समझना! तू अपने यज्ञों को भी उसी में समर्पित करना!                                                                           मन्त्र का भाव है कि- हे जीव तू ज्ञानी बनकर उस मार्ग पर चल मन का पति बनकर यज्ञ के लिए त्याग कर! यज्ञों को प्रभु में अर्पित कर

सुमन भल्ला

Chauri Chaura Times

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button