प्रभु को न भूलता हुआ मनुष्य सुगृहपति बने, पति पत्नी मिलकर गृहस्थ की गाड़ी को खेंचने वाले और सदा सूर्य की भांति नियमित जीवन वाले हों!
प्रभु को न भूलता हुआ मनुष्य सुगृहपति बने, पति पत्नी मिलकर गृहस्थ की गाड़ी को खेंचने वाले और सदा सूर्य की भांति नियमित जीवन वाले हों!
(*अग्ने गृहपते सुगृहपतिस्वत्वयाऽग्नेऽहं गृहपतिना भूयास सुगृहपतिस्त्वमं मयाऽग्ने गृहपतिना भूया:! अस्थूरि
णौ गार्हपत्यानि सन्तु शतहिमा: सूर्यस्यावृतमन्वावर्ते*!) यजु २-२७
व्याख्या जब हमारी आवश्यकता कम होंगी, हम प्रकाशमय नियमित जीवन वाले होंगे! सशक्त होंगे! सूर्य की भांति दैनिक आवर्तन को पूरा करेंगे! और तब सु- गृहपति बन जायेंगे! प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि- अग्ने गृहपते अग्ने त्वया सुगृहपति ना सु – गृहपति: भूयासम् हमारी सब उन्नतियों के साधक हे प्रभो! हमारे घरों के रक्षक! आपके साथ सदा सम्पर्क रखता हुआ मै उत्तम गृहपति बन जाऊँ! आपकी आंख से ओझल न होने पर मै कभी मार्ग भ्रष्ट न होगा! अपने गृहस्थ के कर्तव्यों को आपसे शक्ति प्राप्त करके मैं उत्तमता से निभाने वाला बनूंगा! अग्ने मया गृहपतिनां त्वम् सुगृहपति भूया: हे उन्नति साधक प्रभु! मुझ गृहपति से आप उत्तम गृहपति वाले होओ! जैसे अच्छे शिष्यो से आचार्य उत्तम शिष्यो वाला* कहलाता है उसी प्रकार मुझ आप उपासक द्वारा आप उत्तम गृहपति कहे जायेंगे! मै आपको यशस्वी व स्तुत्य करने के लिए सुगृहपति बनूँ!
हे प्रभु! पति पत्नी हम दोनों के गार्हपत्यानि अस्थूरि संतु गृहपति के कर्तव्य एक बैलगाड़ी के समान न हो जायें! (स्थूरि जिसका एक बैल रह गया हो ऐसी गाड़ी)
अर्थात अपने इस गृहस्थ शक को हम दोनों पति पत्नी मिलकर अच्छी प्रकार वहन करने वाले बनें! हमारा साथ बना रहे! अप मृत्यु से हममें से किसी एक को गाड़ी न खेंचनी पडे! मै *शतं हिमा: सूर्यस्य आवृतम आवर्त सौ वर्ष पर्यंत सूर्य के आवर्तन के अनुसार अपने दैनिक कार्यक्रम के आवर्तन को चलाने वाला बनूँ! वस्तुत: यह नियमित आवर्तन ही सुगृहपति बनने का सर्वोत्तम साधन है! मन्त्र का भाव है कि- हम दोनों प्रभु को न बुलायें पति पत्नी मिलकर गृहस्थ की गाड़ी को वीधिवत खेंचने वाले बनें! सूर्य की भांति नियमित जीवन वाले बनें
सुमन भल्ला