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जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होना चाहते हैं तो जानें किस समय और कब निकलेगी यह यात्रा

उडीसा ,25 जून (आरएनएस)। जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल पश्चिमी ओडिशा राज्य में निकाला जाता है. इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के मंदिर से विशाल रथों पर सवार होते हैं और शहर के मुख्य सड़कों से गुजरते हैं. रथ यात्रा के दौरान लाखों लोग रथ को खींचते हैं और भगवान के दर्शन के लिए प्रयास करते हैं. इसे ओडिशा राज्य के लोग गहरी भक्ति और प्रेम के साथ मनाते हैं.
जानें जगन्नाथ रथ यात्रा की तिथि और समय
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 7 जुलाई को सुबह 4:24 बजे से शुरू होकर 8 जुलाई को सुबह 4:59 बजे तक चलेगी. हिंदू धर्म में इस उदया तिथि को बहुत महत्व दिया जाता है क्योंकि इस दिन शुभ और पुण्यकाल माना जाता है. इस कारण से, 2024 में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा 7 जुलाई को रविवार के दिन होगी.
जानें जगन्नाथ पुरी कैसे पहुंचे
दिल्ली से जगन्नाथ पुरी तक रेलवे और फ्लाइट के द्वारा यात्रा करना बहुत ही सुविधाजनक है. रेलवे के माध्यम से, दिल्ली से भुवनेश्वर जाने के लिए कई ट्रेनें उपलब्ध हैं और वहां से फिर पुरी तक बस या ट्रेन से आसानी से पहुंचा जा सकता है. रेलवे का टिकट आपको पहले से करवाना होगा . वहीं फ्लाइट दिल्ली से भुवनेश्वर के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं और वहां से बस या ट्रेन से पुरी तक आसानी से जा सकते हैं.
जानें रथ का महत्व
पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. इस खास मौके पर, भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के रथों में पहिए जोड़ने से पहले सभी लोग मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि रथों की चाके ठीक से जुड़ी हों. इस समारोह में भक्त उत्साहित होते हैं और भगवान के रथ को खींचते हैं, जिससे उनकी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त होता है. यह पर्व न केवल धार्मिक महत्वपूर्ण होता है बल्कि साथ ही सामाजिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है और सभी को एक साथ लाता है.
जानें इस दिन का महत्व
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के बाद, जब वे गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, तो वे करीब 10 दिन तक वहां ठहरते हैं. इस समय में मान्यता है कि वे अपनी मौसी के घर, जनकपुर में दसों अवतारों में धारण किए गए रूप में उपस्थित रहते हैं. रथ यात्रा के लिए पहिए जोड़े जाने के बाद, भगवान का यह विशेष आगमन और उनका अवसर पर ठहराव लोगों के लिए एक अलग ही अनुभव मिलता है. इस मौके पर लोग धार्मिक और सामाजिक समृद्धि का संदेश बढ़ाते हैं और एक-दूसरे के साथ सम्मान और एकता का प्रतीक बनते हैं.

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