प्रभु बोलें और मैं सुनूँगा! ये वेदवाणियां अर्थ से भरी, उत्तम उपदेश देने वाली व हित रमणीय है!
प्रभु बोलें और मैं सुनूँगा! ये वेदवाणियां अर्थ से भरी, उत्तम उपदेश देने वाली व हित रमणीय है!
(गाव उप वदावटे मही यज्ञस्य रप्सुदा! उभा कर्णा हिरण्य या!) साम ११७-३
व्याख्या इस मन्त्र का ऋषि हर्यत प्रागाथ है प्रभु का खूब गायन करने वाला है! खाते पीते सोते जागते वह प्रभु का स्मरण करना नहीं भूलता है! इसकी वाणी प्रभु के स्त्रोतों का उच्चारण करते हुए यह गतिमय है, इसमें पुरुषार्थ है तथा प्रबल इच्छा शक्ति है कि यह ज्ञान प्राप्त कर सके! यह प्रभु से प्रार्थना करता है कि आप मेरे हृदयाकाश में जिसकी मैने यथा सम्भव काम क्रोधादि वृत्तियों के आक्रमण से रक्षा
की है, तत्व को अपनी जानने वाली वेद वाणियों का उच्चारण कीजिये! मैं प्राकृतिक भोगों में फंसा हुआ नहीं हूँ, मुझे सुनने की प्रबल कामना है! मैं ऐसी वेद वाणियों को सुनूँगा जो महिमा से भरी अर्थ गौरव वाली, जिसके छोटे छोटे शब्द महान अर्थों से भरे हुए हैं! जैसे यहाँ ही अवट शब्द उस हृदय का वाचक है जिसकी वासनाओं से रक्षा की गई हो! यज्ञस्य रप् – सु – दा यज्ञ के उपदेश को उत्तम प्रकार से देने वाली! ये वेदवाणियां सदा उत्तम कर्मों का उपदेश देती है
उपदेश भी इस प्रकार के कि पाठक के हृदय पर उत्तम प्रभाव पडे! ३- उभा कर्णा हिरण्य या जो वाणियां दोनों कानों के लिए हितकर व रमणीय है! वेद वाणियों का सुनना ही ठीक है!
मन्त्र का भाव है कि – प्रभु की वेदवाणियां हम सुनें, ये वाणियां अर्थ से भरी उत्तम उपदेश देने वाली हित रमणीय है