हे प्रभु! आपकी कृपा से हम राग द्वेष से उपर उठकर सदा आपका गायन करने वाले गाथिन: व प्राणी मात्र के मित्र विश्वामित्र बन पायेंगे हमें आपकी सुमति प्राप्त हो
हे प्रभु! आपकी कृपा से हम राग द्वेष से उपर उठकर सदा आपका गायन करने वाले गाथिन: व प्राणी मात्र के मित्र विश्वामित्र बन पायेंगे
हमें आपकी सुमति प्राप्त हो
( इडामग्ने पुरुदंसं सनिं गो:शश्वत्तमं हवमानाय साध स्यान्न:सुनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे ! ) साम ७६-४
हे अग्ने प्रभो! हवमानाय शश्वत्तमम् इडाम् साध तुझे पुकारने वाले मेरे लिए सनातन वेद वाणी को जोकि मानव के लिए सृष्टि के आरम्भ में दिया गया विधान है, सिद्ध कीजिये! मैं इस वेद वाणी को अच्छी तरह समझ सकूँ! यह वेद वाणी पुरुदंसम् पूरक और पालक कर्मों का उपदेश देने वाली है! मनुष्य को किस तरह अपनी न्यूनताओं को दूर करना और किस तरह पालक अहिंसक कर्मों में प्रवृत होना इस बात का उपदेश इस वेद वाणी में दिया गया है, तथा यह वेद वाणी गो: सनिम् ज्ञान की रश्मियों को देने वाली है! प्रत्येक पदार्थ का तत्व का ज्ञान इसमें उपलभ्य है!
न: सूनु:तनय: हमारे पुत्र भी हमारे पद चिन्हों पर चलते हुए विस्तार करने वाले शरीर, मन व बुद्धि को विशाल बनाने वाले, यज्ञ को विस्तृत करने वाले, शारीरिक, आत्मिक, व सामाजिक सभी प्रकार की उन्नति करने वाले हो! वस्तुत: जिन घरों में इस वेद वाणी का अध्ययन वअनुष्ठान चलता रहेगा वहाँ वंश उत्तम बना रहेगा! इसलिए हे अग्ने प्रभो! हमारी यही अराधना है कि सा ते सुमति:अस्मे भूतु वह तेरी वेद में उपदिष्ट कल्याणी मति हममें सदा बनी रहे! इस संसार की चमक से आकृष्ट होकर उस सद्बुद्धि को हम छोड़ न दें! धन धान्य, स्तुति प्रशंसनायें व शानदार जीवनादि के प्रलोभन हमें वेदोपदिष्ट न्याय मार्ग से विचलित न कर दें! हम संसार चक्र में उलझकर राग द्वेष में न फंस जायें!
मन्त्र का भाव है कि- हे प्रभु! आपकी कृपा हम पर सदा बनी रहे हम रागद्वेष से उपर उठकर सदा आपकी स्तुति करें
सुमन भल्ला