वेद वाणी

हमारा लक्ष्य सदा ज्ञान की वृद्धि करना है और अपने जीवन को सद्ज्ञान की ओर ले जाना है!

हमारा लक्ष्य सदा ज्ञान की वृद्धि करना है और अपने जीवन को सद्ज्ञान की ओर ले जाना है!
(समस्य मन्यवे विशो विश्वा नमन्त कृष्टय:! समुद्रायेव सिन्धव:! साम० १३७! ३!
व्याख्या पिछले मन्त्रों में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि मनुष्य को प्रभु के चरणों में ज्ञान की ही भेंट रखनी है, यही विषय इस मन्त्र में भी प्रतिपादित किया गया है, इव जैसे सिन्धव: बहनेवाली नदियाँ समुदाय समुन्द्र के लिए सन्मन्त: झुकती है, अर्थात समुद्र की ओर बहती चली जाती है, उसी प्रकार विश्वा: इस संसार के अंदर प्रविष्ट हुए हुए और अब प्रभु की गोद में प्रवेश की इच्छा वाले कृष्टय: (कृष् उखाड़ना) हृदय स्थली से वासना रुप घास फूस को उखाड़ देने की इच्छा वाले विश: प्रजाजन अस्य इस प्रभु के मन्यवे ज्ञान केलिए प्रभु से दिये गये वेद ज्ञान के लिए संनमन्त झुकते है, अर्थात प्रयत्नशील होते हैं!
इस प्रलोभनों से भरे संसार में ज्ञानाग्नि में ही वासना में भस्म हुआ करती है! वासनाओं को भस्म करके ज्ञान मनुष्य को पवित्र बनाता है! ज्ञान के प्रकाश में ठीक मार्ग ही दिखता है! यह ज्ञान हमारे ऐहिक सुख व शांति का साधन तो होगा ही- मृत्यु के बाद यही हमारी परा मुक्ति का कारण बनेगा , अतः अभ्युदय व नि:श्रेयस का साधन होने से ज्ञान ही धर्म है!
ज्ञान की इस महिमा को अनुभव करते हुए काण्व – कण्वपुत्र अर्थात मेधावी लोग
इस ज्ञान प्राप्ति के लिए सतत् प्रयत्नशील होतें है! ऐसे ही लोग प्रभु को प्रिय होतें है! अतः वे वत्स कहलाते हैं! वत्स का निर्वाचन ऐसा भी किया जा सकता है कि वदतीति वत्स: मन्त्रों का उच्चारण करता है – उनका व्यक्त प्रवचन करता है! यह वेद का अध्येता ही ज्ञानी बनता है! और प्रभु चरणों में पहुँचने के योग्य होता है! मन्त्र का भाव है कि- हमें ज्ञान को प्राप्त करना और सदा इसकी वृद्धि करते चलना ही हमारा लक्ष्य है और हम हर पग पर उन्नति करते चले यही हमारी साधना होनी चाहिए

सुमन भल्ला

Chauri Chaura Times

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button