भारत यदि संस्कृत और भारतीय संस्कृति को आगे करके कार्य करेगा तो शीघ्र ही विश्व गुरु पद को प्राप्त करेगा -कुलपति प्रो मुरली मनोहर पाठक
गोरखपुर,(दिनेश चंद्र मिश्र) युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 54 वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 9 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत आयोजित संगोष्ठी के क्रम में चौथे दिन ” संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति ” विषयक संगोष्ठी के मुख्य वक्ता लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो मुरली मनोहर पाठक ने अपने संस्कृत उद्बोधन में कहा कि भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत और संस्कृति से हीं है । हमारी संस्कृति ,संस्कृत भाषा पर आधारित है। जो हमारे आचार, विचार व व्यवहार में प्रयोग में की जाती है, उसे संस्कृति कहते हैं। हमारे सभी संस्कार संस्कृति के परिचायक हैं और वह सभी संस्कार संस्कृत भाषा के माध्यम से ही किए जाते हैं। हमारी संस्कृति में प्रातःकाल जागरण से लेकर रात्रि पर्यंत हमारी क्रियाएं संस्कृत में लिखित शास्त्रीय विधियों पर आधारित हैं। हमारी संस्कृति में अपने हथेली में भगवान् का दर्शन करते हुए माता रूपी पृथ्वी को प्रणाम करके हीं पृथ्वी पर पैर रखते हैं।
प्रो पाठक ने बताया कि हमारी संस्कृति सूर्य को पिता और पृथ्वी को माता मानती है। इन दोनों के बीच में हम शिशु के रूप में कीड़ा करते रहते हैं ।
उन्होने कहा कि संस्कृत भाषा विश्व की भाषाओं का दिग्दर्शन करती है। यह भाषा विश्व के संपूर्ण मानव जाति को जीवन का आदर्श सिखाती है । भारत यदि संस्कृत और भारतीय संस्कृति को आगे करके कार्य करेगा तो शीघ्र ही विश्व गुरु पद को प्राप्त करेगा। संस्कृत के शास्त्र ही हमें सिखाते हैं कि ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’। धर्म के अनुसार किया जाने वाला कर्म इस लोक और परलोक दोनों में कल्याणकारी होती है। हमारा सौभाग्य है कि वर्तमान प्रधानमंत्री संस्कृत और संस्कृति को जीने वाले हैं । उनके प्रयास से संपूर्ण विश्व में संस्कृत और भारतीय संस्कृति का सम्मान बढ़ा है।
उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा, मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश संस्कृत के माध्यम से शीघ्र विश्व गुरु बनेगा।
वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी , गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पांडेय व गौरव तिवारी तथा संचालन माधवेंद्र राज ने किया । इस अवसर पर ब्रह्मचारी दासलाल , महंत शिवनाथ जी महाराज, योगी कमलनाथ जी, महंत मिथलेशनाथ जी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।