प्रभु हमें धन दें जिसे हम मानवहित और परहित के कार्यों में ही व्यय करें!हम परोपकार का जीवन बितायें!
प्रभु हमें धन दें जिसे हम मानवहित और परहित के कार्यों में ही व्यय करें!हम परोपकार का जीवन बितायें!
( स न इन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भ्य:! वरिवोवित परि स्त्रव! साम-६७३-२
व्याख्या हे प्रभु! आप वरिवोवित है धन प्राप्त कराने वाले है! स: न: परि स्त्रव वे आप हमें धन प्राप्त कराईये!आपके वनों की धारा हमारी ओर बहती रहे, परन्तु आप हमें धन प्राप्त कराईये इन्द्राय यज्यवे वरुणाय इन्द्र के लिए, यज्ञ शील के लिए, वरुण- प्रचेता-प्रकृष्ट ज्ञानी के लिए!
१- जो इन्द्र – इन्द्रियों का दास होगा, वह धन पाकर और भी भोगासक्त हो जायेगा! २- यदि धन प्राप्त करने वाला व्यक्ति यज्यु- यज्ञ शील न होगा तो उसका धन निकृष्ट और हानिकारक कामों में ही विनियुक्त होगा!
वह अपने धन से विद्वानों का पोषण न करके कुछ निकृष्ट लोगों का ही पालन करेगा!
३- यदि उसकी प्रवृत्ति प्रचेता – वरुण बनने की नहीं होगी, तो वह धन से पुस्तकों का संग्रह न करके पत्थरों का ही संग्रह करेगा! इसलिए मन्त्र में प्रार्थना की गई है कि आप इन्द्र, यज्यु, व वरुण को ही धन दीजिये! इन्हें इसलिए धन दीजिये कि – ये मरुद्भ्य: धन का विनियोग मानव हित में ही करें! जब मनुष्य धन को अपना कमाया हुआ समझने लगता है तभी उसमें उसे स्वार्थ के लिए व्यय करने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है तो वह धन का सेवक नहीं स्वामी बन जाता है! मन्त्र का भाव है कि- हम परमेश्वर द्वारा दिये धन को परहित परोपकार, मानवहित में उपयोग कर यज्ञ शील मानव की श्रेणी में होने का गौरव प्राप्त करें
सुमन भल्ला