प्रभु की कृपा से हम सोम का रक्षण करते हुए स्वस्थ, निर्मल व दीप्त जीवन वाले बनें!
प्रभु की कृपा से हम सोम का रक्षण करते हुए स्वस्थ, निर्मल व दीप्त जीवन वाले बनें!
(य इन्द्र चमसेष्वा सोमश्चमूषु ते सुत:! पिबेदस्य त्वमीशिषे)
साम०-१६२! ८!
व्याख्या इस मन्त्र का ऋषि कुसीदी काण्व है!
कुंड सश्लेषणे धातु से यह शब्द बना है! जो प्रभु से संश्लिष्ट होना चाहता है, प्रभु से मिलने की प्रबल इच्छा रखता है वह कुसीदी है! प्रभु की ओर जाने के मार्ग को अपनाना ही बुद्धिमत्ता है, अतः यह काण्व- मेधावी तो है ही! इस मार्ग पर चलने से ही वास्तविक शान्ति उपलभ्य है! इन्द्रियों को वश में रखने वाला इन्द्र ही इस मार्ग पर चल सकता है! इस इन्द्र से प्रभु कहते हैं कि- हे इन्द्र! इन्द्रियों के वशकर्ता ! य: सोम: जो यह सोम( वीर्य शक्ति) सुत: उत्पन्न किया गया है वह ते
तेरे चमसेषु चमसो के निमित्त तथा चमूषु चमुओ के निमित्त ही उत्पन्न किया गया है!
चमस शब्द का अभिप्राय तिर्यगिबलश्चमस उधर्वबुध्नस्तस्मिन् यशो निहितं विश्वरुपम्! तदासत ऋषय: सप्त साकम् इस मन्त्र में स्पष्ट कर दिया गया है! यहाँ चमस का अभिप्राय मस्तिष्क से है और इसके तीर पर स्थित सात ऋषि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम् ये इन्द्रियाँ ही है! इन इन्द्रियों के बहुत्व के दृष्टिकोण से ही चमसेषु शब्द में बहुवचन का प्रयोग है! इन ज्ञानेन्द्रियों के निमित्त वीर्य शक्ति का उत्पादन हुआ है! इन्हें सबल बनाने के लिए ही इस वीर्य शक्ति का विनियोग होना चाहिए!
इस प्रकार यह शक्ति चमुओ के निमित्त उत्पन्न की गई है! चमू शब्द का अर्थ यास्क द्यावा पृथिव्यौ द्युलोक और पृथ्वी करते हैं! अध्यात्म में इनका अभिप्राय है मस्तिष्क व स्थूल शरीर से ही है! वीर्य शक्ति दोनों को सबल बनाने वाली है!
यह स्पष्ट है कि यह सोम शरीर को नी रोगी, इन्द्रियों को शक्तिशाली व मस्तिष्क को उज्जवल बनाने के लिए प्रभु से उत्पन्न किया गया है! यदि हम इसका ठीक उपयोग करेंगे तो हम अपने शरीर, इन्द्रियों को, मस्तिष्क तीनों को ही ऐश्वर्य सम्पन्न बना पायेंगे! प्रभु कहते हैं कि तू अस्य पिब इत् इस सोम का ही पान कर! इसे अपने शरीर में ही सुरक्षित करने में ही प्रयत्नशील हो! यदि हम इस सोम का पान करेंगे तो प्रभु कहते हैं कि त्वम् ईशिषे तू भी ईश हो जायेगा! वेदान्त के शब्दों में जगत को बनाने के व्यापार को छोडकर इसका ऐश्वर्य भी प्रभु जैसा हो जाता है! तो क्या इतना ऊंचा उठा देने वाली शक्ति का अपव्यय कही न्याय हो सकता है?
मन्त्र का भाव है कि- हम पर प्रभु कृपा हर घड़ी बरसती रहती है, उसकी कृपा से सोम की रक्षा करते हुए हम सदा स्वस्थ, निर्मल व दीप्त जीवन वाले बनें
सुमन भल्ला