वेद वाणी

अमोघशक्तियुक्त शुभ संकल्पबलधारी महान आत्माएं जीवन में आने वाले द्वन्द्व को अपनी सहनशक्ति द्वारा विजय पा लेती है!

अमोघशक्तियुक्त शुभ संकल्पबलधारी महान आत्माएं जीवन में आने वाले द्वन्द्व को अपनी सहनशक्ति द्वारा विजय पा लेती है!
(अहमेताञ्छाश्वसतो द्वाद्वेन्द्र ये वज्रं युधयेऽकृण्वत्! आह्ययमानां अव हन्मनाहनं दृळहा वदन्ननमस्युर्नमस्विन:!
ऋग्वेद १०-४८-६
शब्दार्थ ये द्वा द्वा वज्रं इन्द्रं युधये अकृण्वत एतान् शाश्वसत: आह्ययमानां नमस्विन: अहं अनमस्यु:दृळहा वदन् हन्मना अव अहम्!जो ये दो दो करके आने वाले द्वन्द्व मुझ वज्र वाले इन्द्र को युद्ध के लिए बाधित करते हैं! उन इन बडे़ बलवान दिखाई देने वाले और ललकारने वाले किन्तु अंत में झुक जाने वाले द्वन्द्वों को मै कभी न झुकने वाला दृढ वाणियां बोलते हुए
मैं आत्मा अपने हथियार से, अपनी वाक् शक्ति से या संकल्प बल से मार गिराता हूँ!
व्याख्या मैं आत्मा अपरिमित बल वाला हूँ पर फिर भी संसार के द्वन्द्व मुझसे युद्ध करने के लिए आते हैं! ये मुझे दबाना चाहते हैं! ये जानते हैं कि मै वज्र वाला हूँ अमोघशक्तियुक्त संकल्प बल रखता हूँ! ये द्वन्द्व बडे़ शक्तिशाली दीखते है! और वास्तव में सब संसार इन्होने दबा भी रखा है! सब प्राणी गर्मी- सर्दी भूख प्यास प्रिय अप्रिय आदि द्वन्द्व से सताये हुए हैं! इन द्वन्द्वों के चक्कर में सारा संसार घूम रहा है! सूक्ष्म राग द्वेष में रहता हुआ यह द्वन्द्व उच्च पुरुषों का पीछा नहीं छोडता है! परन्तु द्वन्द्वों का सब बल तभी तक है जब तक कि इनका सामुख्य इन आत्मा में नहीं होता है! यद्यपि दो दो का नया नया रुप धर कर सब संसार में व्यापा हुआ यह महावली द्वन्द्व मुझ आत्मा के सामने भी बड़ा बल दिखाता हुआ ललकारता हुआ आता है, पर मेरे सामने उसे‌ नम होना पड़ता है¡‌ सर्दी गर्मी, सुख दुःख, जय पराजय मान अपमान इन सब द्वन्द्वों को इसकी जगह कि ये अपनी द्वन्द्वता से मुझे बांधे, स्वयं अपनी द्वन्द्वता को छोड़कर एक होकर नम हो जाना अर्थात समाप्त होना पड़ता है! ये चाहे कितने बली हो, पर अन्ततः ये परिणामी, अनित्य प्रकृति के बने हुए हैं! इनमें परिवर्तन आना या झुक जाना स्वाभाविक है! मैं नित्य अपरिणामी कभी न झुकने वाला आत्मा हूँ! मै कैसे दब सकता हूँ! मेरे तेज संकल्प बल के सामने इन्हें ही दबना होता है! क्या मनुष्य शीतोष्ण हानि लाभ, हर्ष शोक को सह नहीं सकता है? जिस जिस शरीर में आत्मा इन सब को सहना चाहता है, वहाँ वहाँ आत्मा की दृढ संकल्प मय सहन शक्ति के सामने ये ठहर नहीं सकते! मै आत्मा जब दृढ़ता से कहता हूँ कि मुझे ये द्वन्द्व हानि नहीं पहुचा सकते हैं मै सिद्धि और असिद्धि में सम रहूगा, तो मेरे इन द दृढ वचनों के उच्चारण के साथ चलाये गये मेरे महान वाग् वज्र से मै बलिष्ठ से बलिष्ठ रुप में विद्यमान द्वन्द्व को मार डालता हूँ! अंत में मैं सूक्ष्म राग द्वेष की समाप्ति पर पूर्ण विजयी होता हूँ! मन्त्र का भाव है कि- मैं अपनी संकल्प बल धारी आत्मा द्वारा द्वन्द्वों को समाप्त करते हुए विजय प्राप्त कर लेता हूँ

सुप्रभात सुमन भल्ला

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