तू सचमुच अमर है! हे श्रेष्ठों के पालक! मै मरता नहीं हूँ,
तू सचमुच अमर है! हे श्रेष्ठों के पालक! मै मरता नहीं हूँ, निश्चित यह तेरा मानना सत्य ही है!
मंत्र :– (यद् वा प्रवृद्ध सत्पते, न मरै इति मन्यसे! उतो तत् सत्यमित् तव! )
ऋग्वेद ८! ९३! ५!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(यद् वा प्रवृद्ध सत्पते) और जो हे सर्वोन्नत् श्रेष्ठों के पालक! तू(न मरै इति मन्यसे) मै मरता नहीं हूँ यह मानता है, निश्चित ही (उतो तव तत् सत्यम् इत्) निश्चय ही तेरा यह मानना सत्य ही है!
व्याख्या——– संसार में जो जन्मा है, उसे एक दिन नष्ट अवश्य होना है! ये सूर्य, चांद, तारे वन पर्वत सागर भूतल सब प्राकृतिक पदार्थ एक दिन विनाश के ग्रास हो जायेंगे! शत शत कोटि वर्षों से जो पिण्ड सत्ता में विद्यमान है , वे भी एक दिन विनाश लीला के पात्र बन जायेगें! ये सिंह, गज, मृग पक्षी आदि सब प्राणी भी मृत्यु के मुख में समा जायेंगे! प्राणियों में सबसे उच्च और विलक्षण समझे जाने वाले समस्त मानव भी एक दिन काल कवलित हो जायेंगे! बड़े बड़े सूरमा सम्राट जिनकी एक भृकुटि से ही जग थर्रा उठता था, विकराल काल में समा गयें, अतः जो आज स्वयं को अमर समझे बैठे है, उनका यह विश्वास एक दिन असत्य सिद्ध होकर रहेगा! और वे आंधी से शुष्क तरु के समान काल चक्र की गति से एक दिन उखड़ कर गिर पड़ेगे और धूलिसात् हो जायेंगे! किसी भी व्यक्ति का मन्तव्य कि मैं अमर हूँ, सच्चाई की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है!
परन्तु हे प्रबुद्ध, हे इन्द्र परमात्मा! आप सचमुच अमर है! आप जो अपने विषय में यह मानते हैं कि मैं मरता नहीं हूँ, सर्वथा सत्य है! यो तो दार्शनिकों की दृष्टि से पृथ्वी अप, तेज, वायु के असंख्य परमाणु आकाश, काल दिक् आत्मा मन आदि भी नित्य और अमर माने जाते हैं! पर आपके सम्मुख इनका अमरत्व बिल्कुल नगण्य है! कहाँ तो अचेतन परमाणु, आकाश, काल आदि और कहाँ चैतन्य के भण्डार, तथा अचेतन को चेतना देने वाले आप! आत्मा यदि चेतन भी है तथा अमर भी है और आत्मा की अमरता को वेद, उपनिषद आदि शास्त्र बार बार उजागर करते हैं तो भी आत्मा स्वभावतः अमर होता हुआ भी प्रायः नैतिक मृत्युओ के वशीभूत हो जाता है, अतः उसकी अमरता भी आपकी तुलना में तुच्छ है! इस प्रकार हे अजर, अमर अनादि, अनन्त, नित्य सर्वगत, सच्चिदानन्द पर ब्रह्म परमात्मन्! अमरता तो आपकी ही सत्य है! आप जैसा अमर ब्रह्माण्ड में कोई नहीं है! हे देवाधिदेव! सचमुच आप ही अमर है! अन्य सबका अमरता का गर्व आपके सम्मुख उपहसनीय है!
मन्त्र का भाव है कि–परमात्मा अमर है हम भी परमात्मा की आज्ञा पालन करें और अमरता की ओर कदम बढ़ायें !
सुमन भल्ला