शाह की उम्र, बिहार में मुद्दा क्यों?
यह कमाल की बात है कि बिहार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उम्र और उनके राजनीतिक अनुभव का मुद्दा बन रहा है। वे एक राज्य सरकार में मंत्री रहे हैं, भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के महासचिव और राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं और देश के गृह मंत्री हैं, उन्होंने भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनाई है। इसके बावजूद बिहार के नेता बार बार उनके उम्र और अनुभव का हवाला देकर उनको कमतर दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। हो सकता है कि बिहार के मामले में उनका अनुभव कम हो या लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनको उम्र के आधार पर खारिज कर दिया जाए।
अमित शाह 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उनके पैतृक गांव सिताब दियारा पहुंचे और नीतीश व लालू प्रसाद पर जेपी के सिद्धांतों से हट कर कांग्रेस की गोद में बैठने का बयान दिया तो नीतीश ने तंज करते हुए कहा कि जेपी पर बोलने के लिए अमित शाह की उम्र अभी कम है। उन्होंने कहा कि अमित शाह 2002 से पहले कहां था। नीतीश ने कहा कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब शाह को प्रमुखता मिली और लोगों ने उनको जाना। उनका करियर सिर्फ 20 साल का है। सोचें, इसका क्या मतलब है? उनको 2002 में प्रमुखता मिली तो क्या वे जेपी पर नहीं बोल सकते हैं?
नीतीश कुमार जो सारे समय गांधी के बारे में बोलते हैं और उनके रास्ते पर चलने की बात करते हैं तो क्या इसके लिए उनकी उम्र कम नहीं है? जेपी के निधन के समय अगर अमित शाह बच्चे थे तो महात्मा गांधी के निधन के समय तो नीतीश का जन्म भी नहीं हुआ था। अगर यह तर्क लागू किया जाए तो गांधी से लेकर बुद्ध तक के बारे में कोई भी कैसे बात करेगा? हैरानी की बात है कि जो नीतीश ने कहा उससे पहले वहीं बात उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने भी कही। उन्होंने भी कहा कि शाह जब दस साल के रहे होंगे, तब से हम राजनीति करते हैं। यह भी बेमतलब का बयान है क्योंकि किसी भी नेता का उसकी उम्र से नहीं, बल्कि उसके कामकाज और उपलब्धियों के आधार आकलन होना चाहिए।