मोदी क्यों नहीं चलते भागवत की राह?
(वेद प्रताप वैदिक)
इधर भारत सरकार ने मुसलमानों, ईसाइयों आदि को भी जातीय आधार पर आरक्षण देने के सवाल पर एक आयोग बना दिया है और उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के मुखिया मोहन भागवत ने एक पुस्तक का विमोचन करते हुए भारत में ‘जात तोड़ो’ का नारा दिया है। उन्होंने दो-टूक शब्दों में कहा है कि हिंदू शास्त्रों में कहीं भी जातिवाद का समर्थन नहीं किया गया है। भारत में जातिवाद तो पिछली कुछ सदियों की ही देन है। भारत जन्मना जाति को नहीं मानता था। वह कर्मणा वर्ण-व्यवस्था में विश्वास करता था।
कोई भी आदमी अपने कर्म और गुण से ब्राह्मण बनता है। मोहनजी स्वयं ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए हैं। उनकी हिम्मत की मैं दाद देता हूं कि उन्होंने जन्म के आधार को रद्द करके कर्म को आधार बताया है। भगवद्गीता में भी कहा गया है- ‘चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:।’ याने चारों वर्णों का निर्माण मैंने गुण और कर्म के आधार पर किया है।
यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने भी अपने महान ग्रंथ ‘रिपब्लिक’ में जो तीन वर्ण बताए हैं, वे जन्म नहीं, कर्म के आधार पर बनाए हैं। मनुस्मृति में भी बिल्कुल ठीक कहा गया है कि ‘जन्मना जायते शूद्र:, संस्कारात द्विज उच्यते’ याने जन्म से सभी शूद्र पैदा होते हैं, संस्कार से लोग ब्राह्मण बनते हैं। यजुर्वेद के 40 वें अध्याय में भी कहा गया है कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, पेट से वैश्य और पांव से शूद्र पैदा हुए हैं लेकिन शूद्र भी उसी तरह से वंदनीय हैं, जैसे कि अन्य वर्णों के लोग हैं।
इसीलिए भारतीय लोग ‘चरण-स्पर्श’ को सबसे अधिक सम्मानजनक मानते हैं। भारत की यह वैज्ञानिक वर्ण-व्यवस्था इतनी स्वाभाविक है कि दुनिया का कोई देश इससे वंचित नहीं रह सकता। यह सर्वत्र अपने आप खड़ी हो जाती है लेकिन हमारे पूर्वज कुछ सदियों पहले इसे आंख मींचकर लागू करने लगे। यह भ्रष्ट हो गई। इसीलिए निकृष्टतम जातीय व्यवस्था भारत में चल पड़ी है।
मोहन भागवत को चाहिए कि वे इसके खिलाफ सिर्फ बोलें ही नहीं, भारत की जनता को कुछ ठोस सुझाव भी दें। सबसे पहले तो जातीय उपनामों को खत्म किया जाए। जातीय आरक्षण बंद किया जाए। सुझाव तो कई हैं। मैंने 2010 में जब ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ आंदोलन चलाया था, तब कई ठोस सुझाव देश की जनता को दिए थे। उस आंदोलन के कारण ही प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और सोनिया गांधी ने जातीय जन-गणना को रूकवा दिया था।
उस आंदोलन में मेरे साथ आगे-आगे रहनेवालों में कई नेता आज राज्यपाल, मंत्री और सांसद हैं। उन दिनों नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वे अक्सर मुझे फोन किया करते थे और डटकर समर्थन देते थे लेकिन वोट और नोट की मजबूरी ने हमारी राजनीति की बधिया बिठा दी है। अब यह राष्ट्रवादी सरकार मुसलमानों और ईसाइयों को जातीय आधार पर आरक्षण देने के लिए तैयार हो गई है। मुझे खुशी है कि संघ-प्रमुख राष्ट्रीय एकात्म के लिए खतरनाक बन रहे इस मुद्दे पर कम से कम उंगली तो उठा रहे हैं।