कहां से कहां पहुंचा भारत!
(हरिशंकर व्यास)
यदि जरा में जानकारी और समझ है तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना करें। कौन सी तस्वीर दिमाग में उभरेगी? यों अपनी अपनी पसंद से तस्वीर बनेगी। लेकिन सच्चाई से, वस्तुनिष्ठ तरीके से सोचें तो नेहरू की जो तस्वीर या इमेज उभरेगी, उसमें नेहरू भाखड़ा नांगल बांध बनाने की नींव रखते या उद्घाटन करते हुए होंगे। जब उनका यह वाक्य याद आएगा कि ये बांध आधुनिक भारत के मंदिर हैं। तो इसके बरक्स नरेंद्र मोदी की भी तस्वीर उभरेगी। हाथ में लोटा लिए, त्रिपुंड तिलक लगाए, भगवा या पीला वस्त्र धारण किए मंदिर की ओर जाते या मंदिर के गर्भगृह में बैठ कर महादेव की पूजा करते नरेंद्र मोदी। देश के पहले प्रधानमंत्री उद्योगों की नींव रखते थे और सरकारी खर्च पर मंदिरों के पुनरूद्धार का विरोध करते थे। जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में बने उद्योगों को निजी हाथों में बेच रहे हैं और मंदिरों के पुनरूद्धार कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। सोचें, क्या सवाल नहीं बनता कि भारत कहां से कहां पहुंचा?
मौजूदा प्रधानमंत्री की देश के बाकी प्रधानमंत्रियों के साथ तुलना करेंगे तो यह कंट्रास्ट और ज्यादा साफ दिखाई देगा। अटल बिहारी वाजपेयी भी भाजपा के प्रधानमंत्री थे और हिंदुओं के चहेते नेता था। उन्होंने भी हिंदू धर्म की राजनीति की। उप प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी भी हिंदू हृद्य सम्राट थे। इनसे भी बहुत पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय या श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदुओं के हितों की बात करने, राष्ट्रवाद का झंडा उठाए हुए थे। वे भी मुस्लिम हमलावरों द्वारा नष्ट किए गए मंदिरों के पुन निर्माण की बात करने वाले नेता थे। उनसे भी पहले विनायक दामोदार सावरकर और उनके समकालीन हिंदू महासभा या राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े अनेक लोग थे, जो हिंदू धर्म की ध्वजा उठाए हुए थे।
लेकिन इन सबके चेहरे याद करें? फोटो टटोले। क्या किसी के भी दिमाग में इनकी ऐसी तस्वीर है, जिसमें ये लोग त्रिपुंड तिलक लगाए हुए हों। गंगा में डुबकी लगा रहे हों। लोटे में जल लेकर मंदिर की परिक्रमा कर रहे हों या मल्टी कैमरा सेटअप लगा कर मंदिर के गर्भगृह में महादेव की पूजा कर रहे हों या मंदिर के बाहर नंदी के सामने आसन जमा कर बैठे हों? क्या इससे पहले किसी प्रधानमंत्री का ऐसा बयान सुनने को मिला है कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है या महादेव बुलाएंगे तो उनका यह बेटा कैसे नहीं आएगा?
हो सकता है कि पहले के प्रधानमंत्री या नेता भी मंदिरों में गए हों। वे तस्वीरें हो लेकिन पहली बात वह अपवाद की तरह होगा। दूसरी बात सनातनी हिंदू की तरह पूजा-आस्था के निज विश्वास में वह धर्म कर्म रहा होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे राजनीति करने और शासन चलाने का नियम बनाया है। ताकि लोग देखे। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले आठ साल में करीब एक दर्जन मंदिरों के पुनर्निर्माण का काम शुरू कराया है, उसकी नींव रखी है या उसका उद्घाटन किया है। सभी मंदिरों के मामले में एक कॉमन बात यह है कि कभी न कभी किसी मुस्लिम हमलावर ने इन मंदिरों को तोड़ा था। उसके बाद मंदिर बेशक वापस बना दिए गए थे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनका नए सिरे से निर्माण कराया, उनको और भव्य बनाया।
कहने की जरूरत नहीं है कि इससे उन्होने क्या राजनीतिक मैसेज दिया है। लोग धर्मध्वजा से मगन और रोजी रोटी के लाले। तभी आठ साल के राज में साढ़े सात करोड़ के करीब नए गरीब बढ़े है। 2011 तक गरीबों की संख्या घट कर 27 करोड़ रह गई थी, जो अब 34 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। लेकिन उनका पुनरुत्थान सरकार की प्राथमिकता नहीं है। उन्हें तो पांच किलो अनाज देकर उनका जीवन चलाया जा रहा है। और फोकस अयोध्या से लेकर काशी और सोमनाथ से लेकर केदारनाथ और महाकाल तक मंदिरों के उद्धार पर है।