हम सब प्रभु तेरा गुणगान करते हैं, हम ज्ञान कर्म व उपासना किसी भी क्षेत्र में विचरते हुए उस प्रभु को न भूलें!
(गायन्ति त्वा गायत्रिणोऽर्चन्त्यर्कमर्किण:ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वंशमिव येमिरे) ३४२-१
व्याख्या वेद चार है, लेकिन मंत्र तीन ही प्रकार के है! ऋङ् मन्त्र यजु या फिर साम ! इसलिए त्रयी विद्या शब्द प्रचलित है! ऋच् स्तुतौ धातु से बना ऋच् शब्द उन मन्त्रों का वाचक है जो पदार्थ के गुण धर्मों का वर्णन करते हैं- यही विज्ञान है! इसलिए ऋग्वेद विज्ञान वेद है! यजुर्मंत्र यज्ञों व मानव कर्तव्यों का वर्णन करने वाले है! यजुर्वेद कर्मवेद है
(A Book of Social Sciences) साम मन्त्र उपासना मंत्र है! इनमें जीव को किस तरह प्रभु स्मरण करना है इस बात का प्रतिपादन है! प्रभु स्मरण ही इन्हें वासनाओं के आक्रमण से बचाये रखता है! इस तत्व को समझते हुए गायत्रिण:त्वा गायन्ति साम मन्त्रों से प्रभु गुणगान द्वारा अपनी रक्षा करने वाले ये व्यक्ति हे प्रभु! आपको गातें है! अर्किण ऋचाओं वाले वैज्ञानिक भी यह अनुभव करते हुए कि अन्त में सूर्यादि में उस उस शक्ति का आधान करने वाले आप ही है! अर्कम् अर्चन्ति अर्चना के योग्य आपकी उपासना करते हैं! विज्ञान का गम्भीर अध्ययन आपके प्रति उनकी अटूट श्रद्धा का कारण बनता है! ब्रह्माण: शतक्रतो त्वा उद्येमिरे इव वशं यज्ञों के करने वाले ब्रह्मा आदि ऋत्विज भी हे सैकड़ों यज्ञ करने वाले प्रभु!
आपको ही उन्नत करते हैं! जैसे कि अपरिमित ध्वज दण्ड को, अर्थात ये याज्ञिक भी पग पग पर आपकी महिमा का अनुभव करते हैं!
किस तरह अग्नि की शिखा उपर को जाती है? अग्नि में हव्य द्रव्यों को किस तरह सूक्ष्मातिसूक्ष्म कणों में विभक्त करने की शक्ति है! अग्नि में डाली आहुति किस तरह सूर्य तक पहुँचती है?
इस प्रकार यह याज्ञिक यज्ञों में भी आपकी महिमा का अनुभव करते हैं, इनके अनुभव का सार यही है कि आप सर्वोपरि है! क्या ज्ञान काण्डी, उपासना काण्डी सभी प्रभु गुणगान में लगे हैं! यह प्रभु उपासक किसी का भी वैरी न होकर सभी का स्नेही होता है और यह वैश्वामित्र: कहाता है!
मन्त्र का भाव है कि- हम प्रभु का गुणगान कर्म ज्ञान, उपासना द्वारा करें, प्रभु को कभी भी न भूलें
सुमन भल्ला
(वेद प्रचारिका महर्षि दयानंद सेवा समिति)