लेख

वसुधैव कुटुंबकम् की जीत है ऋ षि सुनक का उद्भव

(भूपेन्द्र गुप्ता)
महात्मा गांधी मानते थे कि अंग्रेज अपनी सभ्यता में किसी को साझेदार नहीं बनाते उन्होंने 1921 में इंग्लैंड की पार्लियामेंट को बांझ बताया था। उन्होंने कहा था कि यह पार्लियामेंट जनता के लिए कोई कार्य नहीं करती उसका हाल बेसवा(वेश्या) की तरह है जो जिसका मंत्रिमंडल हो उसी की हो जाती है।उनका मत था कि जो अंग्रेज मतदाता है उसकी बाइबिल अखबार  हैं।वे अखबारों से अपने विचार बनाते हैं अगर अखबार अप्रमाणिक हों और एक ही बात की दो शक्ल ले लेते हों तो एक दल वाले उसी बात को बड़ी बनाकर दिखलाते हैं। जिस देश में ऐसे अखबार हैं उस देश के आदमियों की कैसी दुर्दशा होगी। वे कहते थे कि  अंग्रेजों ने जो कुछ भी हथियार के बल पर प्राप्त किया है वह गहन असंतोष की तरफ इस देश को ले जाएगा। अंग्रेज किसी गैर अंग्रेज  को घुसने नहीं देते लेकिन एक समय आएगा जब हिंसा से अर्जित की गई यह तरक्की, उद्देश्य हीन हो जाएगी ।तब उन्हें दुनिया के लोगों को अपने सरोकारों में शामिल करना पड़ेगा ।वे कहते थे कि वेश्या एक कड़ा शब्द है परंतु जो मंत्रिमंडल उसे रखता है वह उसी के पास चली जाती है। आज उसका मालिक एस्क्विथ है तो कल बालफर होगा और परसों कोई तीसरा। लेकिन यह पार्लियामेंट तभी फलदाई होगी जब इसमें देश के रहने वाले सभी लोगों के हित शामिल  होंगे। ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही ब्रिटेन में गांधी द्वारा नस्लवाद को अस्वीकार करने की भविष्यवाणी सच सिद्ध हो गयी है ।नस्लवाद के ऊपर बहुलतावाद और उसके भी ऊपर योग्यतावाद को महत्व दिया जा रहा है ।दुनिया में पहली बार जनता के हित के उचित फैसले ना ले पाने के कारण इंग्लैंड की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने इस्तीफा देकर गांधी के उस विचार को ही स्थापित किया है जिसमें जनता के प्रति उत्तरदायी होने की अपेक्षा की गई थी।कोई भी पार्लियामेंट जब तक जनता के पक्ष में  नहीं सोचेगी तब तक उसे फलदाई नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह चुनौती भारत के सामने भी है।उसे एकाधिकारवाद के अंधकार की तरफ बढऩे की बजाय बहुलतावादी भारत के प्रकाश की ओर बढऩा चाहिये।
ब्रिटेन स्वयं नस्लवाद की परिक्रमा से बाहर निकल रहा है ,तब भारत के अंदर एक  वर्ग इसे  भारतीय नस्ल की विजय  बताना चाहता है ।क्या जिस नस्लवाद को सैकड़ों साल बाद ब्रिटेन खारिज करने के लिए मजबूर हुआ है। वही नस्लवाद भारत को महान बना सकता है?
जो लोग इसे धर्म प्रचार के रूप में देखते हैं वे भारत के वसुधैव कुटुंबकम के सनातनी दर्शन पर चोट कर रहे हैं ।आज जब मौका है कि दुनिया में वास्तविक रूप में वसुधैव कुटुंबकम स्वीकार्य हो रहा है तब भारत के ही कुछ लोग उसे सांप्रदायिक संकीर्णता की विजय बताकर, हमारे हजारों साल के दर्शन की स्वीकार्यता को छोटा कर रहे हैं ।ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना मूलत: उस सनातन विचार की जीत है जिसने संपूर्ण पृथ्वी को अपना कुटुंब मानकर भारत का सोच फैलाया था। अपने छोटे से अहंकार की तुष्टी के लिए इतने महान विचार को पीछे धकेलना उचित नहीं कहा जा सकता।
ऋषि सुनक के दादा भारतीय थे किंतु ऋषि सुनक भारत के दामाद है।भारतीय बिटिया ने उनसे विवाह किया है।इसी तरह सोनिया गांधी ने भारतीय राजीव गांधी से विवाह किया और वे भारत की बहू हैं। हमारे समाज में कुछ लोग  बहू और दामाद में अंतर करते है ।यह एक  राजनीतिक समाज के आचरण से पता चलता है कि वह दामाद के लिये पलक पांवड़े बिछा रहा है किंतु बहू के लिये सिर मुड़ाने की बातें कर रहा था।
सभी जानते हैं कि आत्मकेंद्रित समाज बहुआयामी दुनिया में पिछड़ जाते हैं ,यह हमें विचारना ही होगा।यह  भी विचारणीय है कि सुनक मंत्रीमंडल में गृहमंत्री सुएला व्रेवरमेन  भारतीय मूल की होते हुए भी भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की विरोधी हैं।उनका मानना है कि ऐसा एग्रीमेंट करने से भारतीयों के ब्रिटेन में टिकने की समस्या शुरू हो जायेगी। जो आता है वह वापिस नहीं लौटना चाहता।वे भी जन्मना ब्रिटिश हैं।इसलिये बहुत अधिक अपेक्षायें पालना निराश भी कर सकता है।
अब हम बदलती हुई दुनिया को देख रहे हैं ।
जब दुनिया हमारे सनातन बहुलतावाद को स्वीकार कर रही है तब हम भारत में संकीर्ण नस्लवाद के नारे लगा रहे हैं?जब दुनिया सीख रही है तब हमें भी सीखना ही होगा? जब कलाम साब हमारे राष्ट्रपति थे । वे मुस्लिम राष्ट्रों के दौरे पर गये।वहां इंडोनेशिया में एक बच्चे ने उनसे सवाल किया कि राष्ट्रपति महोदय क्या आप एक वाक्य में बता सकते हैं कि आपका देश कैसे महान है?कलाम साब का जबाब था क्योंकि हम पृथ्वी पर एक मात्र देश हैं जहां 3500 तरह की विविधतायें भी शांति पूर्वक रहतीं हैं।हाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज गया।हमारी सह अस्तित्व और समरसता की भावना दुनिया के सामने मिसाल है।यही सनातन संदेश है। सुनक के बहाने ही सही संकीर्णता वादी इसे गुन सकें तो विश्वगुरू वाला मार्ग निष्कंटक हो जायेगा।
(लेखक गांधीचौपाल कार्यक्रम के प्रभारी हैं)

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