नफरत की जड़ है वोट राजनीति
(हरिशंकर व्यास)
संदेह नहीं समस्या की जड़ है सरकार। और उसकी जड़ है सत्तारूढ़ दल की वोट राजनीति। उसी की वजह से नफरत मुख्य धारा का राजनीतिक विमर्श है। टीवी चैनल का नंबर बाद में आता हैं। वे सत्तारूढ़ दल के एजेंडे के प्रचार-प्रसार का महज माध्यम हैं। मिसाल के तौर पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा का एक ट्विट है। इसे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ एक मुस्लिम बच्ची के चलने पर किया। राहुल की यात्रा में हर धर्म के लोग जुड़े हैं। उसी में एक मुस्लिम बच्ची उनके साथ थी, जिसका हाथ पकड़ कर वे चल रहे थे तो संबित पात्रा ने ट्विट किया कि तुष्टिकरण की राजनीति!
सोचे, जब सत्तारूढ़ दल का राष्ट्रीय प्रवक्ता एक छह-आठ साल की बच्ची को लेकर इस तरह की नफरत वाली बात कहे तो क्या समझ नहीं आएगा कि राष्ट्र चरित्र में नफरत कितनी घुल गई है! बुद्धी का क्या हो गया है? भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता इस तरह की बात करते हैं और मीडिया उसे चलाता है। कई बार उन्हें इस तरह की चीजें चलाने को कहा जाता है और कई बार वे खुद की प्रतिबद्धता के चलते ऐसी खबरें चलाते हैं। यह बहुत दुखद है कि सरकार और सत्तारूढ़ दल के एजेंडे को अपना कर उसी में ढल गए है? न्यूज दिखाते और बहस करते-कराते बहुत सारे एंकर और पत्रकार उसी एजेंडे मे रंग गए हैं। वे किसी मजबूरी में या तटस्थ होकर ऐसी खबरें नहीं दिखा रहे हैं, बल्कि वे भी इसी तरह से सोचने लगे हैं। उनको लग रहा है कि वे राष्ट्र का या हिंदू समाज का, इनके नए चरित्र का निर्माण कर रहे हैं।
इसलिए समस्या मीडिया की नहीं है, बल्कि सरकार और सत्तारूढ़ दल की है। वह वोट और चुनावी लाभ के लिए हिंदू-मुस्लिम की सदियों पुरानी ग्रंथि को भुना रहा है, उभार रहा है। उसे मुख्यधारा की मीडिया में बहस का मुद्दा बना दे रहा है। इसलिए जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘विजुअल मीडिया हेट स्पीच का मुख्य माध्यम हैÓ और ‘सरकार मूकदर्शक बन कर नहीं रह सकती हैÓ तो यह पूरी तस्वीर नहीं है। सरकार ने ही विजुअल मीडिया को नफरत फैलाने का मुख्य माध्यम बनाया है। अगर उसके हाथ में इसे नियंत्रित करने की जिम्मेदारी दी जाती है तो समस्या कम होने की बजाय और बढ़ जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटेन की मिसाल दी, जहां नफरत फैलाने वाली खबर चलाने पर चैनल के ऊपर मोटा जुर्माना लगता है। वैसी कोई स्वतंत्र व्यवस्था बनाए जाने की उम्मीद भारत में नहीं करनी चाहिए। अगर सुप्रीम कोर्ट पहल करके ऐसा कोई निकाय बनाए, जो नफरत फैलाने और मानवता विरोधी खबरों पर कार्रवाई करे और चैनलों पर भारी जुर्माना लगाए तब तो कुछ हो सकता है। अन्यथा सरकार क्यों इसे रोकेगी, जब उसको इसका राजनीतिक लाभ मिलता है? खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है चैनल हेट स्पीच को बढ़ावा देते हैं और पार्टियां उसका इस्तेमाल करती हैं। लेकिन सभी पार्टियां इस्तेमाल नहीं करती हैं। हेट स्पीच की लाभार्थी पार्टियां एक-दो ही हैं और वे कौन हैं, यह जगजाहिर है।
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