प्रजातंत्र के राजा अद्भुत, धर्मों के अध्यक्ष उस परमात्मा की मै स्तुति करते हैं और वह हमारी स्तुति को,अवश्य सुनें!
प्रजातंत्र के राजा अद्भुत, धर्मों के अध्यक्ष उस परमात्मा की मै स्तुति करते हैं और वह हमारी स्तुति को,अवश्य सुनें!
मंत्र:– (विशां राजानमद्भुतम्, अध्यक्षं धर्मणामिमम्!
अग्निमीळे स उ श्रवत्)
ऋग्वेद ८! ४३! २४!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(विशां राजानं अद्भुतं धर्मणा अध्यक्षं इमं अग्निं इडे) प्रजाओं के राजा अद्भुत धर्मों का अध्यक्ष इस तेजस्वी नायक परमेश्वर की स्तुति करता हूँ! (स उ श्रवत्) वह निश्चित ही सुने!
व्याख्या——— क्या तुम उस परमेश्वर को जानते हो, जो सब प्रजाओं का राजा है अद्भुत, धर्मों का अध्यक्ष है? अग्नि स्वरूप परमेश्वर ही इन सब गुणों एवं वैचित्र्यो का धारक है! यद्यपि जगत के अनेक भूभागों पर अनेक राजे महाराजे शासन कर रहे हैं, पर असली शासकों का शासक और राजाओं का राजाधिराज तो वह अग्नि देव है, तेजस्विता की राजमाला धारण करने वाले वह परमात्मा देव ही है! जहाँ मानवराजे महाराजाओं की गति नहीं है, वहाँ उस परमेश्वर की गति है सांसारिक राजे महाराजे के साम्राज्य एक हल्के से प्रहार से विध्वंस हो जाते हैं, बड़े से बडे़ सत्ताधारी उसके आगे झुकते है, उसकी कृपा कोर को पाने के लिए लालायित रहते हैं! पर वह परमात्मा देव तो अद्भुत है, अलौकिक, विस्मयकारी है, हमें सूर्य, चन्द्र, तारे, पर्वत समुद्र आदि लौकिक वस्तुएँ भी कम विस्मयकारी नहीं लगती है, परमात्मा की रची हुई एक एक प्राकृतिक वस्तु पर हम मुग्ध हो जाते हैं! पर परमात्माग्नि तो उन सबसे अधिक विस्मयावह है, क्योंकि प्रत्येक विशेषता की पराकाष्ठा उसमें विद्यमान है! सूर्य पर हम उसकी ज्योति के कारण मुग्ध होते हैं, पर प्रभु की ज्योति तो उससे भी सहस्त्रगुणित है! चांद पर हम उसकी शीतल चांदनी के कारण मुग्ध होतें है, पर प्रभु की शीतलता तो उससे सहस्त्रगुणित है, इसी प्रकार सितारों की चमक से अधिक प्रभु की चमक है, हम पर्वत की उचाई पर मुग्ध होतें है, परंतु प्रभु की ऊचाई के सम्मुख पर्वत की ऊचाई तुच्छ है! समुद्र की गहराई पर हम मुग्ध होतें है लेकिन प्रभु की महिमा की अगाधता समुद्र की अगाधता को भी मात करती है! इस प्रकार प्रभु सबसे अद्भुत और विस्मयकारी है! पर परमात्मा देव धर्माध्यक्ष भी है! जैसे कोई न्यायधीश धर्माध्यक्ष बनकर अभियोगों को न्याय के तराजू पर तौल कर न्याय करता है, वैसे ही वह परमात्मा देव सबके सब शुभ अशुभ कर्मों का प्रत्यक्षदर्शी होता हुआ सबको न्याय पूर्वक कर्मफल प्रदान करता है! साथ ही वह सब धर्मो और गुणों का अध्यक्ष भी है, सत्य, न्याय, दया आदि सब गुण उसमें सर्वातिशायी रुप से एकनिष्ठ होकर विद्यमान है! ऐसे उस अग्नि देव का मै स्तवन करता हूँ, पूजन करता हूँ! उससे सद्गुणों की याचना करता हूँ! वह प्रभु देव मेरी पुकार को सुनें और पूर्ण करें
मन्त्र का भाव है कि-परमप्रभु सर्वगुण सम्पन्न है, वह मुझ पर कृपा करके सद्गुणों को प्राप्त कराये!
सुमन भल्ला