नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (वार्ता) केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपना प्रारंभिक हलफनामा दाखिल कर इस विवादास्पद कानून की संवैधानिक वैधता का दृढ़ता से बचाव किया है।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के माध्यम से दाखिल किए गए इस हलफनामे में केंद्र ने उन दलीलों को खारिज कर दिया है कि संशोधन संविधान के तहत मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 25 और 26 के तहत अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
संयुक्त सचिव शेरशा सी. सैदिक मोहिद्दीन द्वारा प्रस्तुत हलफनामे में इस बात पर जोर दिया गया है कि संशोधनों का उद्देश्य केवल वक्फ संपत्ति प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करना है। यह धार्मिक स्वतंत्रता या इस्लामी अनुष्ठानों में हस्तक्षेप नहीं करता है।
केंद्र सरकार ने संसद द्वारा बनाए गए सभी कानूनों के लिए संवैधानिकता की कानूनी धारणा का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय से अधिनियम के प्रावधानों पर अंतरिम रोक न लगाने का आग्रह किया।
केंद्र के हलफनामे में स्पष्ट तौर पर कहा, “यह अधिनियम केवल प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक आयामों जैसे रिकॉर्ड रखने और वक्फ संपत्तियों के प्रशासन से संबंधित है। यह किसी भी आवश्यक धार्मिक प्रथाओं, अनुष्ठानों या दायित्वों में हस्तक्षेप से बचता है।” केंद्र ने ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की छूट पर चिंताओं को भ्रामक और निराधार बताया। सरकार ने स्पष्ट किया कि आठ अप्रैल, 2025 तक पहले से पंजीकृत सभी मौजूदा वक्फ भूमि पूरी तरह से संरक्षित हैं।
केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि अनिवार्य पंजीकरण की अवधारणा 1923 से लगातार वक्फ कानूनों के तहत अस्तित्व में है। सरकार ने जोर देकर कहा कि वक्फ पंजीकरण कोई नई आवश्यकता नहीं है, संशोधन केवल नियामक हैं। इससे धार्मिक अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सरकार ने कहा, “एक स्पष्ट और अनिवार्य विधायी व्यवस्था है, जो सभी वक्फों का पंजीकरण सुनिश्चित करती है – एक मानदंड जो एक सदी से भी अधिक समय से चली आ रही है।”
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने पर आपत्तियों को खारिज करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि ये निकाय प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष हैं और धार्मिक प्रथाओं का प्रशासन नहीं करते हैं। सरकार ने जोर देकर कहा कि उनकी भूमिका नियामक और सलाहकार की है।
हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा, “केंद्रीय परिषद में गैर-मुस्लिमों की अधिकतम संभावित संख्या 22 सदस्यों में से चार और राज्य बोर्डों में 11 में से तीन है। मुस्लिम बहुमत में बने रहेंगे।”
केंद्र ने हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती बोर्डों के साथ तुलना का भी खंडन किया, जिसमें जोर देकर कहा गया कि वक्फ संपत्तियां अक्सर सार्वजनिक और यहां तक कि गैर-मुस्लिम भूमि के साथ ओवरलैप होती हैं, जिससे संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए विविध प्रतिनिधित्व आवश्यक हो जाता है।
सरकारी अधिकारियों को यह निर्धारित करने की अनुमति देने वाले प्रावधानों को उचित ठहराते हुए कि क्या वक्फ दावों में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण शामिल है, केंद्र ने वैध दस्तावेजों के बिना कलेक्टर के कार्यालयों, सरकारी स्कूलों और एएसआई-संरक्षित स्थलों पर दावों सहित प्रलेखित दुरुपयोग का हवाला दिया।
हलफनामे में कहा गया है, “वक्फ बोर्डों ने कई मामलों में उचित निर्णय या सबूत के बिना सार्वजनिक उपयोगिताओं और विरासत स्थलों पर स्वामित्व का दावा किया है।”
केंद्र ने धारा 2ए के तहत नए प्रावधान के बारे में (जो मुस्लिम व्यक्तियों को धर्मनिरपेक्ष ट्रस्ट बनाने की अनुमति देता है) कहा कि यह केवल मौजूदा न्यायशास्त्र को स्पष्ट करता है और व्यक्तियों को एक सामान्य ट्रस्ट कानून ढांचे का विकल्प चुनने का अधिकार देता है।
हलफनामे में कहा गया, “यह न्यायिक निर्णयों को रद्द नहीं करता है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार-बार बरकरार रखी गई कानूनी स्थिति की पुष्टि करता है।”
शीर्ष अदालत ने अगली सुनवाई के लिए पांच मई की तारीख मुकर्रर की है।
पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र ने स्वेच्छा से कुछ विवादास्पद प्रावधानों को निलंबित करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें आश्वासन दिया गया था कि पंजीकृत वक्फ भूमि (जिसमें उपयोगकर्ताओं द्वारा दावा की गई भूमि भी शामिल है) प्रभावित नहीं होगी।
बीरेंद्र, यामिनी