उस सोम प्रभु ने अज्ञान अंधकार को नष्ट करते हुए महान ऋत शुद्ध सात्विक ज्योति को जन्म दिया!
मंत्र :– (पवमान ऋतं बृहच्छुक्रं ज्योतिरजीजनत्! कृष्णा तमांसि जङ्घनत्!)
ऋग्वेद ९! ६६! २४
उस सोम प्रभु ने अज्ञान अंधकार को नष्ट करते हुए महान ऋत शुद्ध सात्विक ज्योति को जन्म दिया!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(कृष्णा तमांसि जङ्घनत्) काले तमो को पुनः पुनः अतिशय नष्ट करते हुए (पवमान:वृहत् ऋतं शुक्र ज्योति:अजीजनत्)पवमान सोम ने महान ऋत को शुद्ध पवित्र ज्योति को जन्म दिया है!
व्याख्या———- यह जगत सत्व, रजस्, तमस् गुणों का खेल है! सत्व गुण लघु है और प्रकाश को लाता है! रजोगुण चल है और कार्य में प्रवृत करता है, तमोगुण गुरु हैं और क्रिया निरोध उत्पन्न करता है! यदि रजोगुण प्रवर्तक न हो तो सत्व और तमस् स्वयं प्रवृत्त नहीं हो सकतें है! इसी प्रकार तमोगुण निरोधक न हो तो रजस् और रजस् द्वारा प्रवृत्त सत्व सदा ही क्रियाशील बने रहे, कभी रुके नहीं! इस प्रकार तीनों गुण एक दूसरे के सहायक होते हैं! ये तीनो जब उचित अनुपात में मिलते हैं, तब जीवन को उसी प्रकार प्रबुद्ध करते हैं, जिस प्रकार उचित अनुपात में मिट्टी, तेल बत्ती और अग्नि मिलकर दीपक को प्रज्वलित करते हैं, किन्तु अनुपात में न्यूनता या आधिक्य होने पर अनर्थकारी हो जाते हैं! तमोगुण का आधिक्य विशेष रूप से तामसिक, जडता मोह, अज्ञान, अविवेक, आदि को उत्पन्न कर देता है! उससे मनुष्य अविद्या ग्रस्त हो जाता है! अनित्य जगत देह आदि को नित्य समझना अशुचिस्व शरीर को शुचि समझना दुखरुप वैषयिक सुख को वास्तविक सुख समझना और अनात्म भूत देह, इन्द्रिय आदि को आत्मा समझना ही अविद्या है! हृदय में अविद्या का साम्राज्य होने पर मनुष्य के गुण कर्म, स्वभाव तीनों ही तामसिक हो जाते हैं! घनघोर काले तमोगुणो से आच्छन्न होकर मनुष्य दिशा भ्रष्ट हो जाता है! तमोगुण की इस काली निशा को काटने वाला पवमान सोम के अतिरिक्त और कौन हो सकता है? पावक सोम प्रभु ही चांद बनकर कृष्ण रात्रि के काले तमो को विच्छिन्न करते हैं, पुनः पुनः अतिशय तीव्रता के साथ अपनी दिव्य किरणों के प्रहार से जर्जर करते हैं! वे न केवल तम को नष्ट करते हैं, अपितु सत्वगुण की पवित्र ज्योति को, सत्वगुण की निर्मल चन्द्रिका को भी जन्म देते हैं! सत्व की शुद्ध शुभ्र ज्योति के जन्म से अन्त:करण में वृहत ऋत का महती ऋतम्भरा प्रज्ञा का उदय होता है, जिससे साधक को निर्विकल्पक समाधि का आनंद प्राप्त होता है!
हे पवमान सोम! आज मेरा यह सौभाग्य है कि तुमने मेरे हृदयान्तरिक्ष में उदित होकर तमोगुण के समस्त तमस्तोम को नष्ट भ्रष्ट कर सत्त्व की पवित्र ज्योति को तथा महान ऋत को जन्म दिया है! इस दिव्य जन्म पर मैं मुग्ध हूँ और मेरी कामना है कि यह मुझमें सदा के लिए स्थिर हो जाये! हे परमात्मन्! तुम सदा मेरे हृदय- गगन में चन्द्र बनकर चमकते रहो! मन्त्र का भाव है कि– हे सोम प्रभु! आपकी कृपा से मेरे हृदय में सदैव शुद्ध सात्विक ज्योति का जन्म होता रहे!
सुमन भल्ला