बच्चों को संक्रामक हेपेटाइटिस से बचाने के लिए स्वच्छता का रखें खास ख्याल
गोरखपुर, बच्चों को संक्रामक बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए उनकी स्वच्छता का खास ख्याल रखना बहुत जरूरी है । जरा सी भी असावधानी से बच्चा संक्रामक हेपेटाइटिस की चपेट में आ सकता है । संक्रामक हैपेटाइटिस बीमारी ख़ासकर हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस ई, दूषित जल, दूषित भोजन, खुले में शौच और व्यक्तिगत अस्वच्छता से फैलती है । इस बीमारी के लक्षण के साथ आने वाले बच्चों का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज का बाल रोग विभाग इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) में नमूने भेज कर जांच करवा रहा है ।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ अनिता मेहता ने बताया कि यह एक संक्रामक बीमारी है जो एक व्यक्ति से दूसरे में फैलती है। अगर मां गंदे हाथों से खाना खिलाती है अथवा खुले में बिकने वाले खाद्य पदार्थों को अगर दूषित पानी से बनाया गया हो या गंदे हाथों से परोसा गया है तो इसका संक्रमण फैलने का ख़तरा होता है । छिछले नल के पानी के सेवन से इस बीमारी के होने का खतरा है। इससे बचाव के लिए आवश्यक है कि शुद्ध पानी का सेवन करें । भोजन को ढंककर रखें और घर का बना एवं साफ सुथरे हाथों से परोसा गया ताज़ा स्वच्छ खाना ही खाएं। फलों को स्वच्छ पानी से धुलकर ही बच्चों को खिलायें। खाना पकाने और परोसने से पहले हाथों को “सुमन के” विधि से साबुन से धुलें। शौच जाने के बाद और खाना खाने के पहले हाथों को अच्छी तरह साबुन से अवश्य धुलें ।
डॉ. अनिता मेहता ने बताया कि अगर बच्चे में, मिचली, उल्टी, त्वचा और आंखों का पीला पड़ना, पेशाब का रंग गहरा हो जाना, अत्यधिक थकान, भूख कम लगना और वजन घटने जैसे लक्षण नजर में आ रहे हैं तो तुरंत चिकित्सक को दिखाया जाना चाहिए। यह हेपेटाइटिस बीमारी हो सकती है जो क़ि एक वायरस के कारण होती है। इसलिए इसके लक्षण के आधार पर अतिशीघ्र इलाज आवश्यक है। मेडिकल स्टोर से अपने मन से दवा खरीद कर नहीं देनी है, अन्यथा जटिलताएं बढ़ जाती हैं। प्रशिक्षित चिकित्सक को ही ससमय दिखाना है और उनके परामर्श के अनुसार दवा लेनी है ।
पीलिया के भेजे गये 76 नमूने
बाल रोग विभाग द्वारा किए गए शोध के अंतरिम रिपोर्ट में यह आंकड़े सामने आए है कि अभी तक कुल 76 बच्चों के (जो अलग अलग जिलों से पीलिया के लक्षणों के साथ आए) सैम्पल आईसीएमआर भेजे गए । उनमें 26 बच्चे संक्रामक हेपेटाइटिस से संक्रमित पाए गए। इनमें से ज्यादातर बच्चे हेपिटाइटिस ए से संक्रमित थे जबकि तीन बच्चे हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस ई दोनों से संक्रमित मिले। 78 फीसदी बच्चों में दो हफ्ते के भीतर में संक्रमित भोजन या पेय पदार्थ के सेवन की जानकारी मिली। यह देखा गया कि 96 फीसदी बच्चों में उनके अभिभावक में हाथ धोने का आचरण नहीं पाया गया, जबकि 74 फीसदी बच्चे आंशिक या पूर्ण रूप से छिछले नलों से पीने का पानी का सेवन करते थे । 60 फीसदी बच्चे शौचालय का प्रयोग नहीं करते थे।
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अजीत यादव ने बताया कि यह नमूने बीते तीन माह के भीतर भेजे गये हैं । हेपेटाइटिस ए और ई को संक्रामक हेपेटाइटिस कहा जाता है जिसका संक्रमण रक्त के माध्यम से नहीं बल्कि दूषित जल और दूषित भोजन (फ़िको-ओरल ट्रैन्स्मिशन) के सेवन से होता है। संक्रामक हेपेटाइटिस में सिर्फ हेपेटाइटिस ए का टीका अभी उपलब्ध है और इसके प्रयोग से हेपेटाइटिस ए से बच्चों का बचाव किया जा सकता है।
जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन आवश्यक
प्रधानाचार्य डॉ० गणेश कुमार ने बताया कि हेपेटाइटिस ए और हेपटाइटिस ई के फैलाव का खतरा मानसून और इसके आसपास के मौसम में ज्यादा होता है। समय समय पर स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत जैसे विशेष संचारी रोग नियंत्रण माह के माध्यम से चलाए जा रहे जनजागरूकता अभियानों, दूषित जल व दूषित खाद्य पदार्थ के सेवन से परहेज, खुले में शौच न जाने और व्यक्तिगत स्वच्छता पर खास ध्यान देने से इसका रोकथाम किया जा सकता है।