लखनऊ 14 मई, (वार्ता) मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर को धर्म, न्याय और राष्ट्रधर्म का सजीव स्वरूप बताते हुए कहा कि वे भारतीय सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना की अग्रदूत थीं।
लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की जन्म त्रिशताब्दी के अवसर पर राजधानी लखनऊ स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित समारोह में योगी ने कहा कि अहिल्याबाई ने “धर्म रक्षति रक्षितः” के वैदिक उद्घोष को न केवल जिया, बल्कि उसे मूर्त रूप भी दिया। जब देश विदेशी आक्रांताओं से त्रस्त था, मंदिर विध्वंस किए जा रहे थे, तब अहिल्याबाई ने बिना भय के, बिना किसी राजनीतिक समर्थन के, उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का विराट कार्य अपने हाथों में लिया था, आज हमें उनके जीवन से सद्प्रेरणा लेकर देश और सनातन संस्कृति के गौरव की पुनर्स्थापना के लिए पूरे मनोयोग से समर्पित हो जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उल्लेख किया कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने स्वयं घोषणा की थी “ मेरा पथ धर्म का पथ है, धर्म का पथ ही न्याय का पथ है और न्याय का पथ ही हमें सर्वशक्तिमान और समर्थ बनाने में सहायक हो सकता है।” उनके इस उद्घोष ने ही उनके शासन और जीवन के कार्यों को दिशा दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें आज जो भव्य काशी विश्वनाथ मंदिर दिखता है, वह उसी मंदिर का स्वरूप है जिसे अहिल्याबाई होल्कर ने 1777 से 1780 के बीच अपने निजी संसाधनों से बनवाया था।
उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण हुआ, तो स्वयं प्रधानमंत्री ने 13 दिसंबर 2021 को इसे अहिल्याबाई होल्कर के कार्य का ही विस्तारित रूप बताया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई केवल काशी तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने केदारनाथ धाम, रामेश्वरम्, सोमनाथ, हरिद्वार, महिष्मति और देश के अनेक तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार का कार्य किया। उन्होंने नदियों के घाटों, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया ताकि श्रद्धालुओं को सुविधा मिले और शुद्ध पेयजल की उपलब्धता बनी रहे।
योगी आदित्यनाथ ने लोकमाता अहिल्याबाई को भारतीय नारीशक्ति की प्रतीक बताते हुए कहा कि उन्होंने न केवल राजनैतिक प्रशासन को धर्म-संगत और प्रजा-हितकारी बनाया, बल्कि सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए। उनकी प्रशासनिक दूरदृष्टि और साधु-संतों के प्रति श्रद्धा के साथ सेवा-भाव आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने बताया कि किस तरह लोकमाता अहिल्याबाई ने अपनी प्रशासनिक क्षमता और दूरदर्शिता से माहिष्मति में साड़ी उद्योग को बढ़ावा देकर महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने का कार्य किया। साथ ही उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित और बाल विवाह पर रोक लगा कर नारी सशक्तिकरण की दिशा में अनुकरणीय कार्य किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें महारानी अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लेकर भारत के प्राचीन गौरव और सनातन संस्कृति के उत्कर्ष में संपूर्ण मनोयोग से समर्पित होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस तरह सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्र भारत में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से एक सांस्कृतिक चेतना का सूत्रपात किया, उसी भावधारा की आधारशिला सैकड़ों वर्ष पहले लोकमाता अहिल्याबाई ने रखी थी। उन्होंने आदि शंकराचार्य की परंपरा को भी स्मरण करते हुए कहा कि भारत की सांस्कृतिक एकता चारों कोनों में स्थापित पीठों के माध्यम से आज भी कायम है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक अवसर है कि जब हम उनके योगदान को स्मरण कर रहे हैं, उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काशी, अयोध्या, उज्जैन और अब मां विंध्यवासिनी धाम में भी भव्य परियोजनाएं आकार ले रही हैं।