अष्टांग योग का उद्देश्य
अष्टांग योग का उद्देश्य-
(वैदिक प्रवक्ता डा0 श्वेत केतु शर्मा ,बरेली ,पूर्व सदस्य हिन्दी सलाहकार समिति, भारत सरकार)
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के अनुसार “”योग के आठ अंगों के अनुष्ठान से अविद्यादि दोषों का क्षय और ज्ञान के प्रकाश की वृद्धि होने से जीव यथावत मोक्ष को प्राप्त हो जाता है””अतः महर्षि दयानंद के अनुसार अष्टांग योग का मुख्य उद्देश्य मोक्ष को प्राप्त करना है ।
मोक्ष क्या है?
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मोक्ष एक दार्शनिक शब्द है ,शास्त्रों और वैदिक वाड्गमय के अनुसार जीव का जन्म और मरण के बन्धन से छूट जाना ही मोक्ष है। इसे विमुक्ति’ और ‘मुक्ति’ भी कहा जाता है। भारतीय दर्शनों में कहा है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार बार जन्म लेता और मरता है । इस जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है । जब मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तब फिर उसे इस संसार में आकर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
महर्षि दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश के नवम सम्मुल्लास में लिखा है”मुन्चन्ति पृथग्भवन्ति जना यस्यां सा मुक्तिः” मुक्ति नाम है छूट जाना।
भारतीय दर्शन में भी जीवन के चार उद्देश्य हैं—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । इनमें से मोक्ष परम अभीष्ट अथवा ‘परम पुरूषार्थ’ है । मोक्ष की प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या ब्रह्मतत्व का साक्षात् करना है । न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का आत्यधिक नाश ही मुक्ति या मोक्ष है । सांख्य के मत से तीनों प्रकार के तापों का समूल नाश ही मुक्ति या मोक्ष है । वेदान्त में पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध प्राप्त करना मोक्ष है । इस प्रकार सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही मोक्ष है ।
मनुष्य अपने किए हुए पुण्य वा शुभ कर्म का फल भोगने के उपरान्त फिर इस संसार में आकर जन्म ले; इससे उसे फिर अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ेंगें। मोक्ष मिल जाने पर जीव सदा के लिये सब प्रकार के बन्धनों और कष्टों आदि से छूट जाता है ।
भारतीय दर्शनों में न्याय, वैशेषिक , बौद्ध , सांख्य ,मीमांसा ,जैन ,वेदान्त आदि दर्शनों में भी दुःख रूपी संसार से मुक्त होकर परमपिता पर्मेश्वर के सानिध्य में पहुंचने का नाम मोक्ष है।
उपनिषदों में आनन्द की स्थिति को ही मोक्ष की स्थिति कहा गया है।
गीता में:-
बुद्धया विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च।
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।511।। विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।52।।
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।53।।
विशुद्ध बुद्धि से युक्त तथा हलका, सात्त्विक और नियमित भोजन करने वाला, शब्दादि विषयों का त्याग करके एकान्त और शुद्ध देश का सेवन करने वाला, सात्त्विक धारणशक्ति के द्वारा अन्तःकरण और इन्द्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला तथा अहंकार, बल, घमण्ड, काम, क्रोध और परिग्रह का त्याग करके निरन्तर ध्यानयोग के परायण रहने वाला, ममता रहित और शान्तियुक्त पुरुष सच्चिदानन्द ब्रह्म में अभिन्नभाव से
स्थित होने का पात्र होता है वही परमआनंद को प्राप्त हो सकता है।(गीता अ 18,श्लोक 51, 52, 53)
इस प्रकार गीता में भी श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा सान्सारिक बन्धन से मुक्त होकर परम आनंद की प्राप्ति हो सकती है ,संसार से कौन मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। भारतीय दर्शनों,उपनिषदों,गीता के साथ
महर्षि पतंजलि के योग दर्शन में मोक्ष के लक्षण इस प्रकार है :-
पुरूषार्थ शून्यानां गुणानां प्रति प्रसवः कैवल्यं।
स्वरूप प्रतिष्ठा वा चिति शक्ति रिति।।यो०पा०4सूत्र 33
अर्थात पुरूष के सत्व,रज और तमो गुण और उसके सभी कार्य पुरूषार्थ से नष्ट होकर व जीवात्मा यथावत शुद्धि को प्राप्त होकर जैसे तत्व को प्राप्त करके ,स्वाभाविक शक्ति व गुणों से युक्त होके ,शुद्ध स्वरूप परमेश्वर के स्वरूप के विज्ञान प्रकाश से नित्य आनंद में रहता है उसी को कैवल्य (मोक्ष) कहते है।महर्षि पतंजलि के इस सूत्र से स्पष्ट है कि साधना करने से मलिनता का नाश व ज्ञान का प्रकाश व विवेक ख्याति की वृद्धि होती है ।
इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये योग दर्शन में कहा है :-
यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याधारधारणा ध्यान समाधयोअ्ष्टांगानि।। यो० पा 2 सूत्र 29।
अतः स्पष्ट है कि अष्टांग योग द्वारा परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हेतु एक साधना पद्धति है। योग दर्शन में तीन प्रकार की योग साधनाओं का वर्णन किया है। प्रथम साधना उत्तम कोटि के साधकों के लिए है, जिन्हें केवल अभ्यास और वैराग्य के माध्यम से ही समाधि की अवस्था प्राप्त होते ही मोक्ष को प्राप्त हो सकते है। उत्तम कोटि के साधक ईश्वर प्रणिधान द्वारा भी साधना करके समाधि भाव की प्राप्ति के पश्चात परम लक्ष्य सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं। मध्यम कोटि के साधकों के लिए महर्षि पतंजलि ने दूसरे अध्याय में क्रिया योग का चिन्तन किया है। क्रिया योग का अर्थ है-
तप स्वाध्यायेश्व्रप्रणिधानानि क्रियायोग 2/1
तप, स्वाध्याय तथा ईश्वरप्रणिधान की संयुक्त साधना क्रिया योग कहलाती है। जिसका उद्देश्य समाधि भाव को प्राप्त करना व क्लेशों को नष्ट करना है।
तृतीय प्रकार की साधना सामान्य कोटि के साधकों के लिए है ,जिनका न तो शरीर शुद्ध है और न ही मन। ऐसे साधकों को प्रारम्भ से ही साधनारत रहते हुए महर्षि पतंजलि द्वारा प्रस्तुत अष्टांगयोग का आश्रय लेना चाहिए तभी परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है ,इसप्रकार तीन प्रकार की साधनाओं के द्वारा मोक्ष प्राप्ति केलिये अष्टांग योग का परम उद्देश्य होता है।
अष्टांग’ शब्द दो शब्दों के मिल कर बना है अर्थात् अष्ट व अंग, जिसका अर्थ है आठ अंगों वाली साधना है।
अष्टांग योग के अंग
अष्टांग योग के 8 अंग है:-
(1):-यम(2)):-नियम(3):-आसन(4):-प्राणायाम(5):-प्रत्याहार(6):-धारणा(7):-ध्यान(8):-समाधि
महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग को भी दो भागों में बांटा है
(1) – बहिर्अंग योग (2)’-अन्तर योग। वहिर्अंग में यम, नियम,आसन,प्राणायाम, प्रत्याधार है तथा अन्तर्अंग में धारणा, ध्यान व समाधि को माना है।
1. बहिर्अंग योग –
1. यम – सामाजिक बंधन से मुक्ति होना यम है ।
पातंजल योग दर्शन में – पांच प्रकार के यमों को विभाजित किया है:-
तत्राहिंसासत्यास्तेयं ब्रह्मचर्य परिग्रहायमः।।यो०पा०2 सूत्र०30।।
(1)अहिंसा(2)सत्य,(3)अस्तेय,(4)ब्रह्मचर्य(5) अपरिग्रहा, ये पांच यम है।
. इसप्रकार यम के पांच स्तम्भ अहिंसा सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह के द्वारा मोक्ष के लक्ष्य को प्राप्त कराना ही अष्टांग योग का उद्देश्य है।
2. नियम – शौचसंतोषतपः स्वाध्यामेश्वरप्राणिधानि नियमः।।यो०पा2 सूत्र 32।
आन्तरिक अनुशासन में रहने का नाम ही नियम है।। इस प्रकार अष्टांग योग के द्वितीय सोपान के शौच, संतोष ,तप ,स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान के द्वारा मोक्ष तक पहुंचने का उद्देश्य ही अष्टांग योग है।
3. आसन –
स्थिर और सुख पूर्वक बैठना आसन कहलाता है।
4. प्राणायाम –
प्राणवायु का निरोध करना ‘प्राणायाम’ कहलाता है।
5. प्रत्याहार –
इसमें इन्द्रिया अपने बहिर्मुख विषयों से अलग होकर अन्तर्मुखी हो जाती है, इसलिए इसे प्रत्याहार कहा गया है।
2. अन्तरंग योग –
1. धारणा 2. ध्यान 3. समाधि ।
1. धारणा – मन (चित्त ) को एक विशेष स्थान पर स्थिर करने का नाम ‘धारणा’ है।
2. ध्यान –
किसी अन्य विषय में उसकी वृत्ति आकर्षित न हो ‘ध्यान’ कहलाता है।
3. समाधि –
योगश्चितवृत्ति निरोध। समाधि अवस्था में योगी की समस्त प्रकार की चित्त वृत्तियॉ निरूद्ध हो जाती है।
अतः उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि अष्टांग योग को जीवन में अवतरित करने का उदैश्य जीवात्मा के परम लक्ष मोक्ष को प्राप्त करना है तथा इस जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है । जब मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तब फिर उसे इस संसार में आकर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है।यही अष्टांग योग का उदैश्य है।
लेखक,प्रतिभागी व प्रेषक
डा0 श्वेत केतु शर्मा,आचार्य
सूक्ष्म परिचय
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(1):-वैदिक प्रवक्ता (डा0) श्वेतकेतु शर्मा, आयुर्वेद स्नातक, विधि स्नातक, आचार्य(दो वर्ष), वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ ।सम्पूर्ण देश में वैदिक सिद्धांतों के प्रचार प्रसार में प्रयत्नशील।
(2):-पिता :– वेद वेदांगों व आयुर्वेद के प्रकान्ड विद्वान स्वर्गीय डा0 सुरेन्द्र शर्मा ,अवकाश प्राप्त चिकित्साधिकारी ,उ प्र सरकार ।एवं माता:- स्वर्गीय डा0 सावित्री देवी शर्मा ,वेदाचार्या,वेदों की प्रकान्ड विदुषी ,विश्व की प्रथम वेदाचार्या ,विश्व की प्रथम वेद उपदेशिका ,शतपथ ब्राह्मण की भाष्यकार, शतपथ के प्रतीक विधान ग्रन्थ की रचयिता, सम्पूर्ण देश में वेद प्रचार ।
(3):पूर्व-सदस्य हिन्दी सलाहकार समिति, भारत सरकार,
(4):-पूर्व मंत्री आर्य समाज विहारीपुर बरेली,
(5):- पूर्व मंत्री व आजीवन सदस्य आर्य समाज अनाथालय ,बरेली।
(6):-संस्थापक संयोजक :- वेद विचार मन्डल, बरेली द्वारा वर्चुअल गूगलमीट आनलाइन आयोजित वैदिक आध्यात्मिक साप्ताहिक सत्संग ।
(7):-अभी तक 40 शोध पत्र राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में पढ चुका हूं एवं वर्तमान में आनलाइन वर्चुअल राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय 27 संगोष्ठियों में शोधपत्र वाचन किया है।आर्य प्रतिनिधि सभा अमेरिका द्वारा आयोजित 2nd व 3rd अन्तर्राष्ट्रीय योग निवन्ध प्रतियोगिता में प्रतिभागिता सराहनीय सम्मान,
(8):-अनेकों धार्मिक, शैक्षिक, सामाजिक संगठनों के सदस्य।(9):-आकाशवाणी बरेली, रामपुर, लखनऊ से वार्ताओं का प्रसारण ,दूरदर्शन बरेली व लखनऊ से अनेकों वार्ताओं का प्रसारण हो चुका है।
(10):-केन्द्रीय विद्मालय ,एन ई आर ,बरेली के पूर्व कार्यकारिणी सदस्य ।
(11):-अध्यक्ष :- सरस्वती शिशु मंदिर ,केशव नगर ,छीपी टोला बरेली व सदस्य :-बाल कल्याण समिति ,बरेली।
(12):- कार्यकारिणी सदस्य :-पार्वती प्रेमा जगाती सरस्वती विहार आवासीय उच्यत्तर माध्यमिक विद्मालय ,नैनीताल ।
(13):-बरेली की आर्य विभूतियां, श्रृषि दर्पण,देववाणी संदेश ,आयुर्वेद में आत्म चिन्तन,सेहत का खजाना ,शोध लेखान्जलि,आकाशवाणी-दूरदर्शन वार्ताएं आदि पुस्तकों के लेखक।संम्पादन :- देववाणी संदेश ,भारत महिमा,वैदिक विचार संदेश ।
(14):-अमर उजाला (बरेली )व अमर उजाला लखनऊ से प्रकाशित मासिक पत्रिका *चौपाल *में प्रतिमाह तीन वर्ष तक लेख प्रकाशित ।दैनिक जागरण ,हिन्दुस्तान, आर्य मित्र (लखनऊ),आर्यसंदेश(दिल्ली),आर्यजगत(दिल्ली),सार्वदेशिक(दिल्ली),परोपकारी(अजमेर) ,शान्तिधर्मी (जिन्द),नयालुक( लखनऊ) ,परिवर्तन पत्रिका (मुम्बई) ,आर्यावर्त केसरी (अमरोहा),रूहेलखण्ड पोस्ट,बरेली ,हैल्थ वाणी ,गम्भीर न्यूज,बरेली आदि पत्रपत्रिकाओं में सैकडों लेख ,शोध आलेख ,लघु लेख ,कविताएं आदि का प्रकाशन हुआ है और हो रहा है तथा शोध पत्रिकाओं में शोध लेखों का भी प्रकाशन हुआ है ।
(15):-सम्मान व अभिनंदन:-(1)आर्य समाज की सर्वोच्च संस्था परोपकारिणी सभा द्वारा राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ,(2)-2008 तथा विशिष्ट मानव रत्न सम्मान 2021,(3)-आदर्श दम्पति सम्मान 2008,(4)- खन्डेलवाल ललित कला अकादमी, बरेली द्वारा पं राधेश्याम कथावाचक सम्मान 2016,(5)गायत्री गौरव सम्मान 2021,(6) गायत्री साधक सम्मान 2021,(7)लाइन्स क्लब,रोटरी क्लब बरेली विशाल वोकेशनल एवार्ड 2008,,(8)रोटरी क्लब आफ रोहिलखन्ड बरेली वोकेशनल एवार्ड 2012-13,(9)आर्यसमाज, अनेको शैक्षिक ,धार्मिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित ।(10)आर्य प्रतिनिधि सभा अमेरिका द्वारा आयोजित 2nd अन्तर्राष्ट्रीय योग निवन्ध प्रतियोगिता में प्रतिभागिता सराहनीय सम्मान 2021,(11)-हिन्दी सचिवालय माँरिशस द्वारा आयोजित अटल काव्य लेखन सम्मान 2021,(12)-राष्ट्रीय समाज सेवा मंच ,बरेली व राष्ट्रीय सद्भावना मंच के तत्वावधान में आयोजित नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125 वीं जयन्ति के अवसर पर आ0देवर्षि इन्द्रेश जी द्वारा सेवा रत्न सम्मान *से अलंकृत 2022 ,(13):-आध्यात्म पथ पत्रिका के द्वारा महर्षि दयानन्द की 198वीं जयन्ति के अवसर पर 198वेंआनलाइनअन्तर्राष्ट्रीय कुन्डीय यज्ञ के अवसर पर *आध्यात्म रत्नमानद उपाधि से सम्मानित फरवरी 2022,(14)-यज्ञ रत्न सम्मान 2022।(15)-आध्यात्म पथ पत्रिका के तत्वावधान में आयोजित चतुर्दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेद सम्मेलन 14 जून 2022 को वेद गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया
(16):-मातृ भाषा :-संस्कृत, जन भाषा :- हिन्दी व English.
(17):-E Mail id :- shwetketusharma@gmail.com
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