हे सर्वत्र संचारी पवित्रकर्ता सोम प्रभु! जो दूर और समीप हो कर मुझे भय प्रदान करता है, उसे विनष्ट कर दो, मैं निर्भय बनूँ!
हे सर्वत्र संचारी पवित्रकर्ता सोम प्रभु! जो दूर और समीप हो कर मुझे भय प्रदान करता है, उसे विनष्ट कर दो, मैं निर्भय बनूँ!
मंत्र :– (यदन्ति यच्च दूर के, भयं विन्दति मामिह! पवमान वि तज्जहि!)
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(यत् अन्तिम यत् च दूरके इह मा भयं विन्दति) जो समीप और जो दूर यहाँ मुझे भय प्राप्त करता है, (पवमान तत् वि जहि) हे सर्वत्र सञ्चारी,पवित्रकर्ता सोम प्रभु! उसे विनष्ट करो!
व्याख्या——- मनुष्य प्राणियों में सबसे बुद्धिमान होता हुआ सबसे अधिक भयशील है, अन्य सब पशुपक्षी, कीट, पतंग, सरीसृप भयावह जंगल में निर्भय विचरते है! परन्तु मानव घर में ही भयभीत रहता है! वह सर्प, आधि, व्याधि चोर, शत्रु, शासक आदि के भय से व्याकुल रहता है! ये भय आत्मविश्वास और प्रभु विश्वास की कमी के कारण होते हैं!
मै भी समीप और दूर के अनेक प्रकार के भयो से घिरा हुआ हूँ, समीप में मुझे पडोसी, संगी साथी से, घर के सदस्यों से भी भय लगा रहता है कि ये कहीं मेरा कुछ अनिष्ट न कर दे! अपने मन में संदेह का बीज बोकर मै सोचता हूँ कि कहीं ये मेरी हत्या न कर दे! मेरा धन न हडप ले, नींद में भी मुझे चोरों के सपने आते हैं! दूर जाता हू तो वहाँ भी भय पीछा नहीं छोडता है, मै सोचता हूँ कि कहीं मै रेलगाड़ी या मोटर कार से दुर्घटनाग्रस्त न हो जाए! कहीं लुटेरे न लूट ले, मेरी अनुपस्थिति में परिवार पर कोई संकट न आ जाये! ये सब ऐसे भय है जो व्यर्थ ही मेरे शंकाशील मन को उद्विग्न किये रहते हैं! परन्तु इनके अतिरिक्त कयी भय सचमुच के भी होतें है, जिनके भय का कारण वास्तव में उपस्थित होता है! उस समय भी मैं भय-कारणो का प्रतिकार करने के स्थान पर भय ग्रस्त हुआ निष्कर्मा खडा रहता हूँ! मैं इतना भयशील हूँ कि मुझे संध्या वंदन करते, हुए भी भय व्यापे रहता है कि कहीं कोई मेरा उपहास न करें! इन दूर के, तथा समीप के सभी भयों को हे मेरे प्रभु! तुम्ही दूर कर सकते हो! तुम्हारा सच्चा ध्यान मेरे अंदर आत्म संबल उत्पन्न कर सकता है! तुम पवमान हो, सर्वत्र सञ्चारी, सर्वव्यापी और अन्त:करण को पवित्र करने वाले हो! तुम सर्वत्र मेरे चित्त की भय दशा को जानकर और उससे मुझे मुक्त कर पवित्र करते रहो! हे पवित्रकर्ता! तुम मेरे भयों को समूल विनष्ट कर दो, जिससे फिर कभी भय मेरे मानस को आक्रान्त न कर सकें! समीप और दूर के स्थानों को, सब दिशाओं को मेरे लिए निर्भय कर दो!
मन्त्र का भाव है कि- हे प्रभु! मुझे सबसे निर्भय कर दो, सब दिशाओं में मुझे निर्भय करो!
सुमन भल्ला