हे सोम प्रभु! तुम चराचर जगत के सृजनहार हो, मेरे अंदर मन:संयुक्त धी का सृजन, तथा पार्थिव और दिव्य सम्पत्ति को प्राप्त कराओ!
हे सोम प्रभु! तुम चराचर जगत के सृजनहार हो, मेरे अंदर मन:संयुक्त धी का सृजन, तथा पार्थिव और दिव्य सम्पत्ति को प्राप्त कराओ!
(त्वं धियं मनोयुजं, सृजा वृष्टि न तन्यतु:!
त्वं वसूली पार्थिवा, दिव्या च सोम पुष्यसि !)
ऋग्वेद ९! १००! ३!
(सोम त्वं मनोयुजं धियं सृज) हे सोम परमेश्वर! तू मन से संयुक्त बुद्धि और क्रिया को उत्पन्न कर! (तन्यतु:वृष्टिंन त्वं पार्थिवा दिव्या च वसूली पुष्यसि) विद्युत जैसे वर्षा को उत्पन्न करती है तू पार्थिव और दिव्य ऐश्वर्यो को पुष्ट कर!
व्याख्या——– हे सोम परमेश्वर! तुम्हारे अंदर अपूर्व सृजनात्मक शक्ति है, तुम सम्पूर्ण चराचर जगत का सर्जन करने वाले हो! अत:तुमसे मेरी यह प्रार्थना है कि तुम मेरे अंदर मन:संयुक्त धी का सृजन करो! वैदिक धी में बुद्धि और क्रिया शक्ति दोनों ही सम्मिलित हैं! मन का कार्य संकल्प और विचार करना है तथा बुद्धि का कार्य अध्यवसाय या निश्चय करना है! हमारी बुद्धि मन:संयुक्त हो, अर्थात हम जो कुछ निश्चय करें, वह मन में सोच विचार के उपरांत ही करें, क्योंकि बिना विचारे सहसा किया गया निश्चय प्रायः भ्रान्त होता है! इसी प्रकार हमारी क्रिया भी मन:संयुक्त हो, अर्थात हम कर्म भी विचारपूर्वक करें! जैसे विद्युत मेघ में वृष्टि उत्पन्न करती है, वैसे ही तुम हमारे अन्दर मन:संयुक्त धी को उत्पन्न करो, धी की वर्षा करो! उस धी की वृष्टि से संस्नात होकर हम अपने अंदर प्रबोध, चैतन्य, स्फूर्ति, प्रफुल्लता को अनुभव करें!
हे सोम परमेश्वर! तुम ऐश्वर्यशाली हो! तुम मुझे पार्थिव और दिव्य दोनों प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करो, पार्थिव ऐश्वर्यो से हम तुमसे धन धान्य पुत्र पशु, दुग्ध, घृत, वस्त्र, उत्तम गृह, भूमि, खेत, बाग बगीचे आदि की समृद्धि चाहते हैं! वेद ने गृह-समृद्धि का चित्रांकन करते हुए कहा है कि हमारी चिरकाल तक स्थिर खडी़ रहने वाली शाला में अश्व हो, गौएँ, अन्न घृत, वत्स, कुमार, तरुण, दूध सु भरें घडे़ हो, दही के मटके हो! हमारे घरों में तुम ऐसा चित्र ला दो! हम समृद्धि पूर्वक इस प्यारे लोक में हंसते खेलते, नाचते गाते दीर्घ जीवन पाते हुए आगे बढे! साथ में तुम हमे दैवी सम्पत्ति भी प्रदान करो, जिसमें ज्ञान योग, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, अंहिसा सत्य, अक्रोध,त्याग, शान्ति तेज, क्षमा, धृति, इन नामों से गीता में परिगणित किया गया है! इन पार्थिव और दिव्य उभयविध ऐश्वर्यो को हमें प्रदान करके तुम सदा इन्हें परिपुष्ट करते रहो, जिससे कभी भी ये क्षीण न हो,प्रत्युत अधिकाधिक बढते ही जाएं! मन्त्र का भाव है कि–भक्त प्रभु से मनोयुजा धी तथा पार्थिव और दिव्य सम्पत्ति की कामना करता है!
सुप्रभात सुमन भल्ला