हे प्रभु! आप हमारे अनिष्ट, कठिन बाधाओं को दूर करो!
हे प्रभु! आप हमारे अनिष्ट, कठिन बाधाओं को दूर करो!
मंत्र :–(ये भक्षयन्तो न वसून्यानृधुर्यानगंयो अन्वतप्यन्त धिषण्या:!
या तेषामवया दुरिष्टि :स्विष्टिं नस्तान्कृणवद्विश्वकर्मा!
अथर्ववेद २! ३५! १!
व्याख्या :– जिन्होंने नाना भोगों को भोगते हुये यज्ञादि उत्तम कर्मों को नहीं बढाया, अनुष्ठान नहीं किया, उन कृपण लोगों की जो विनाश कारी खोटी मति है, वह प्रभु दुर्बुद्धि को सद्बुद्धि में बदल दे!
असुर और देवों मे यही भेद है कि असुर अपने ही पालन पोषण को ध्येय मानते हैं, खाना पीना, ही उनका जीवन का लक्ष्य है, पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते हैं!
कुछ लोग ऐसे होते हैं कि लोक लाज या किसी के समझाने पर यज्ञादि उत्तम कार्य अनमने होकर कभी कभी कर लेते हैं, अश्रद्धा से किया यज्ञ दुरिष्टि ही कहा जाता है (श्रद्धयाऽग्नि समिध्यते श्रद्धया हूयते हवि:)
यज्ञ में श्रद्धा ही मुख्य है, श्रद्धा रहित यज्ञ से अभिषेक सिद्धि नहीं होती है!
देवता वो है दूसरे को खिलाकर खाते है, उनके द्वारा दी गई आहुतियां जड़ चेतन सभी को पुष्ट करती है!
है प्रभु! आप विश्वकर्मा हो, सारे संसार की रचना आपने की है, सृष्टि के प्रारम्भ में आपने वेदों के द्वारा यज्ञादि उत्तम कर्मों का विधान करते हुए कहा है कि_
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्विष्टकामधुक )
इस यज्ञ के द्वारा तुम उन्नति को प्राप्त करो, यह यज्ञ तुम्हारी सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला हो
हमारा निवेदन है कि (आयुर्यज्ञेन कल्पन्ताम) हमारा जीवन यज्ञ मय हो! हमस्विष्टकृत बने दुष्टकृत नहीं!
ये यज्ञाग्निया तृप्त होकर अच्छे लोक पहुचाये!
धर्म धन की जीवन रक्षक पेटी हमें वैतरणी से पार पहुचाये!
प्रभु! हमारा कल्याण हो!
सुमन भल्ला