हे प्रभु! तू याचक को कभी खाली नहीं लौटाता है, उसकी झोली ऐश्वर्य से भर देता है, मेरी भी झोली भर दे! मुझपर कृपा करो!
हे प्रभु! तू याचक को कभी खाली नहीं लौटाता है, उसकी झोली ऐश्वर्य से भर देता है, मेरी भी झोली भर दे! मुझपर कृपा करो!
मंत्र :– (किमङ्ग त्वा मघवन भोजमाहु:, शिशीहि मा शिशयं त्वा श्रणोमि!
अप्नस्वती मम धीरस्तु शक्र,
वसुविदं भगमिन्द्रा भरा न:!
ऋग्वेद १०! ४२! ३!
ऋषि- कृष्ण:देवता- इन्द्र:
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(अङ्ग मघवन् किं त्वा भोजम् आहु:) हे ऐश्वर्यवान परमात्मन्! क्यो तुझे दानी कहते हैं! (मा शिशीहि त्वा शिशयं श्रणोमि) मुझे तीक्ष्ण कर, तुझे तीक्ष्णकर्ता सुनता हूँ! (शक्र मम धी: अप्नस्वती अस्तु!) हे शक्तिशालिन्!मेरी बुद्धि कर्म युक्त हो! (इन्द्र भगम् आभर!) हे प्रभु! हमारे लिए निवासप्रद ऐश्वर्य प्राप्त करा!
व्याख्या——— हे सर्व धनो के धनी ऐश्वर्यशाली परमात्मन्! तेरी महिमा का गान करने वाले संतों से मै सुनता हूँ कि तू बड़ा दानी है, तेरे पास से कोई याचक खाली नहीं लौटता है, जो कोई तुझसे मांगता है, उसकी झोली तू उस वस्तु से भर देता है! पर मै तो तुझे दानी तब समझूँ, जब तू मुझे भी अपने दान से कृतकृत्य कर दे!
मै तुझसे पहली वस्तु यह मांगता हूँ कि तू मुझे तीक्ष्ण कर दे, तू मुझे तीक्ष्णधार तलवार के समान सुतीव्र कर दे, जिससे कोई भी आंतरिक या बाह्य शत्रु मुझे आक्रांत करने का साहस न कर सके! हे शक्ति के पुञ्ज! मेरी दूसरी याचना तुझसे यह है कि मेरी बुद्धि को कर्मवती बना! उन्नति के आकाश में उडने के लिए मनुष्य के पास ज्ञान और कर्म रुप दो पंख है, बुद्धि के बल से प्राप्त विद्या तबतक अकिञ्चितकर होती है जब तक उसके साथ कर्म नहीं मिल जाता! ऋषियों ने कहा है कि जो अकेले कर्म के उपासक है वे घोर अंधकार में है और जो अकेली विद्या या बुद्धि के उपासक है वे उससे भी घोर अंधकार में है! अत:जीवन में दोनों का समन्वय श्रेयस्कर है! बुद्धि से हम जो ज्ञान अर्जित करें, उसके अनुसार आचरण भी करें!
हे इन्द्र! मैं तुमसे तीसरी वस्तु की प्रार्थना करता हूँ (वसुविद् भग) है जो बसाने वाला है, मै तो देखता हूँ कि संसार में अनेकों व्यक्ति धनो के स्वामी होकर भी उजडते है वे भोगों को भोग नहीं पाते अपितु भोग उन्हें भोगते है! ऐसा धन मैं नहीं चाहता, मैं तो ऐसे धन की कामना करता हूँ, जो मुझे सच्चा भोक्ता बनाये! जो दोनों पर बरसे, मेरा गौरव बढाये, मेरे यश का हेतु बने, मेरे अंदर सद्गुणों का आधान करें, जो मेरे अंदर सब कुछ लाकर बसा दे!
मन्त्र का भाव है कि- हे इन्द्र प्रभु! मैं भिक्षुक बन तेरे सम्मुख झोली पसार रहा हूँ, मेरी झोली ऐश्वर्य से भर दो!
सुमन भल्ला