वेद वाणी

हे प्रभु!हमारे हृदय एवं मनोभूमि पर दुर्गुणों का कूड़ा जमा है उसे आपकी कृपा से परिष्कृत करता हुआ आपके आनन्द लोक से परिस्त्रुत होऊ!

हे प्रभु!हमारे हृदय एवं मनोभूमि पर दुर्गुणों का कूड़ा जमा है उसे आपकी कृपा से परिष्कृत करता हुआ आपके आनन्द लोक से परिस्त्रुत होऊ!
मंत्र :– (परिष्कृण्वन्ननिष्कृतं जनाय यातयन्निष:! वृष्टिं दिव: परिस्त्रव!) ऋग्वेद ९!३९! ९
पदार्थ एवं अन्वय:–
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(अनिष्कृतं परिष्कृण्वन् जनाय इष:यातयन दिव:वृष्टिं परिस्त्रव) हे पवमान सोम! अपरिष्कृत को परिष्कृत करता हुआ मानव के लिए अभीष्टोको प्रयत्नोंपार्जित करता हुआ आत्मलोक से आनन्द वर्षा को परिस्त्रुत कर!
व्याख्या—— जब धरती वर्षा की प्यासी होती है तो कोटि कोटि कण्ठों से वर्षा की पुकार करतीं हैं! और यदि भूमि पर झाड झंकार उगे है तो वर्षा भी क्या करेगी? यदि बरसेगी भी तो झाडियों को बढाने का कार्य करेगी, अत:पहले भू प्रदेश को परिष्कृत करना आवश्यक है, फिर वृष्टिं सिक्त भूमि में बीज होते हैं! तत्पश्चात वर्षा होकर फसल को बढाती है! यह तो आकाश से होने वाली भौतिक वर्षा की बात है! पर मेरी मनोभूमि भी आज आध्यात्मिक वर्षा की प्यासी हो रही है! हे वर्षा के अधिपति सोम प्रभु! तुम मेरे मानस में आनन्द रस की वर्षा करो! किन्तु मेरी मनोभूमि में जो प्रमाद आलस्य अविद्या, राग द्वेष आदि का कूड़ा जमा है, पहले उसे साफ करने की आवश्यकता है! हे प्रभु! मैं आपकी सहायता के बिना अपनी अपरिष्कृत भूमि को भी परिष्कृत करने के लिए अपने को अशक्त पा रहा हूँ!
तुम मेरे अंदर ऐसे पवित्रता की आंधी चलाओ, जो अपने साथ समस्त हृदय मालिन्य को बहा ले जाये! तथा अन्त:करण को पूर्णतः निर्मल और परिष्कृत कर दे! तदनंतर मुझे इष:का अधिपति बनाने के लिए मेरी मनोवांछित अध्यात्म सम्पत्ति मुझे प्राप्त कराने के लिए तुम अपने सहारे को अक्षुण्ण रखने के लिए मुझसे प्रयत्न करवाओ, उग्र तप करवाओ! सतत् प्रयत्न और तप के परिणाम स्वरूप मेरे अंदर अंहिसा धृति, अस्तेयं इन्द्रियनिग्रह, सात्विकता आदि अभीष्ट गुण का अभ्युदय होगा! इसके पश्चात ही मैं तुम्हारी दिव्य वृष्टिं से सिक्त होने का अधिकारी बनूंगा! तब तुम मेरी सुपरिष्कृत तथा अभीष्ट दिव्य गुणों से अंकुरित मनोभूमि पर अध्यात्म लोक से या आनन्दमय कोष से दिव्य आनन्द रस की वर्षा करना! तब मेरे आत्मा, बुद्धि, मन, प्राण ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियां, सब अंग, प्रत्यंग उस रस से स्नात होकर नवीन स्फूर्ति और चैतन्य का अनुभव करेंगे! ताप से संतप्त मनुष्य शीतल वर्षा से नहाकर जिस आह्लाद का अनुभव करता है, उससे सहस्त्रगुणित आह्लाद की मुझे अनुभूति होगी! मन्त्र का भाव है कि- हे सोम प्रभु! अपनी शीतल दिव्य मन भावनी वृष्टिं से मुझे कृतकृत्य करो!

 सुमन भल्ला

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