हे प्रभु! अव्रती को व्रती बनाओ, उनके अंदर देवत्व प्राप्ति की उत्कंठा जागृत करो, जिससे वे परमैश्वर्य को प्राप्त करें!
हे प्रभु! अव्रती को व्रती बनाओ, उनके अंदर देवत्व प्राप्ति की उत्कंठा जागृत करो, जिससे वे परमैश्वर्य को प्राप्त करें!
मंत्र :–(य इन्द्र सस्त्यव्रतो ऽनुष्वापमदेवयु:!
स्वै: ष एवैर्मुमुरत् पोष्ट रयिं सनुतर्धेहि तं तत:!)
ऋग्वेद ८! ९७! ३!
पदार्थ एवं व्याख्या :–
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(इन्द्र य: अदेवयु:अव्रत: अनुष्वापं सस्ति) हे परमात्मा! जो देवों की कामना न करने वाले अव्रती निद्रा को निरंतर प्रवृत रखने वाले सोये रहते हैं! (स:स्वै:एवै:पोष्ट रयिं मुमुरत्) वह अपने आचरणों से पोषणीय ऐश्वर्य को नष्ट कर देता है! (तं तत:सनुत:धेहि) उसे उससे पृथक कर दो!
व्याख्या——– मनुष्य ने मानव शरीर देवत्व की ओर अग्रसर होने के लिए प्राप्त किया है! उसके लिए कुछ व्रत ग्रहण करने होतें है, जागरूक रहकर उन व्रतों का पालन करना होता है! वैदिक संस्कृति में यज्ञोपवीत धारण, वर्ण आश्रम मर्यादा संस्कार यज्ञ आदि का अनिवार्य कर्तव्य रुप में विधान किया गया है! यह विभिन्न व्रतों के धारण और पालन की ओर संकेत है! व्रतों के पालन में सद्गुण आदि का ऐश्वर्य प्राप्त होता है, जिसे साधक को निरंतर परिपुष्ट करते रहना होता है! व्रतनिष्ठ लोगों को सदैव ऐसे परमैश्वर्य की प्राप्ति होती रहती है! एक व्यक्ति के देव.बन जाने पर शनैः शनै बढते बढते एक से दो, दो से चार, चार से दस, दस से बीस और बीस से सौ इस तरह सारा समाज देव बन सकता है! पर यह स्थिति तभी होती है जब मानव देवयु हो, सचमुच देवत्व प्राप्ति की कामना करें! जो देवयु नहीं होता है, उसमें देवत्व प्राप्ति का उत्साह नहीं होता है वह जीवन में कोई व्रत नहीं लेता है, कोई उच्च लक्ष्य निर्धारित नहीं करता है! वह गहरी नींद सोया रहता है! वह अपने प्रति, समाज के प्रति, परिवार और मनुष्य के प्रति जो कर्तव्य है उनका पालन नहीं करता है! परिणामतः वह निन्दित आचरणों में संलग्न रहता है! और व्रती तथा सत्कर्मनिष्ठ होने पर जिन ऐश्वर्यो की प्राप्ति सम्भावित थी उनसे वह वंचित रहता है! यदि कभी व्रत पालन एवं सदाचरण से उसे कोई ऐश्वर्य की निधि प्राप्त हुई भी होती है तो अव्रती होकर वह उन्हें नष्ट कर डालता है! इस प्रकार धीरे धीरे पृथिवी पर देवत्व के स्थान पर असुरत्व का साम्राज्य छा जाता है!
हे देवत्व के प्रसारक! व्रतियों के व्रती परमात्मन्! इस भूतल पर ऐसे निद्रालु लोग है उनकी कुम्भकर्णी नींद को तुम तोड़ दो उन्हें कर्तव्य के प्रति सजग करो, उनके अंदर देवत्व प्राप्ति की उत्कण्ठा जाग्रत करो, उन्हें व्रतनिष्ठ बनाओ, जिससे वह परमैश्वर्य को प्राप्त करें! इस प्रकार एक एक मानव को देव बनाते हुए तुम एक दिन सारे विश्व में देवत्व का प्रसार कर दो!
मन्त्र का भाव है कि– प्रभु सारे समाज में मानव में देवत्व के गुणो का आधान करें जिससे सारी पृथ्वी पर परमैश्वर्य का साम्राज्य छा जाये!
सुमन भल्ला