हे प्रभु! मै तुझे पाने के लिए मरुस्थल के प्याऊ के समान हूँ, मेरी प्यास को बुझाओ, मेरे अभिनन्दन को स्वागत को स्वीकार करो!
हे प्रभु! मै तुझे पाने के लिए मरुस्थल के प्याऊ के समान हूँ, मेरी प्यास को बुझाओ, मेरे अभिनन्दन को स्वागत को स्वीकार करो!
मंत्र :–
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(प्र ते यक्षि प्र त इयर्मि मन्म, भुवो यथा वन्द्यो नो हवेषु!
धन्वन्निव प्रपा असि त्वमग्ने, इयक्षसे पूरे प्रत्न राजन्!)
ऋग्वेद १०! ४! १!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(अग्ने ते प्र यक्षि ते मन्म प्र इयर्मि) हे परमेश्वर! तेरे लिए मै प्रकृष्टया आत्म दान करता हूँ तेरे लिए स्त्रोत को प्रेरित करता हूँ! (यथा वन्द्य:न:हवेषु भुव:) जिससे वन्दनीय तू हमारे आह्वानो में सन्निहित हो जाए! (प्रत्न राजन् त्वं इयक्षवे पूरवे धन्वन् प्रपा इव असि) हे राजन्! तू यज्ञ के इच्छुक मनुष्य के लिए मरुस्थल में प्याऊ के समान होता है!
व्याख्या : –
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हे मेरेप्रभु! तुम राजा हो मै रंक हूँ, इस पद पर आज तुम नये नये अभिषिक्त नहीं हुए हो किन्तु तुम तो सनातन राजा हो! मै तुम्हें क्या उपहार दू! मुझ अकिंचन पर यदि कुछ है तो वह तुम्हारा ही दिया है, तुम्हारी ही वस्तु तुम्हें कैसे दूं? अतः मैं तो तुम्हें अपनी आत्मा का ही दान कर रहा हूँ! इस आत्मसमर्पण के अवसर पर मुहुर्मुहु:तुम्हारे प्रति वैदिक स्त्रोतों का गान कर रहा हूँ! तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, तुम उपस्थित होकर मेरे स्वागत को ग्रहण करो!
हे वन्दनीय अग्निदेव! मेरे मन में यज्ञ करने की उत्कट लालसा उमड़ रही है! संसार में ज्यों ज्यों आधि- व्याधियाँ, दुख- दारिद्रय बढ़ रहे हैं, त्यों त्यों यज्ञ की आवश्यकता बढती जा रही है!अतः मैंने यज्ञ करने का संकल्प किया है! मैं बाढ़, दुर्भिक्ष, भूकंप, भुखमरी, महामारी से कराह रहे जन समाज की सेवा का व्रत लेता हूँ! मैं व्यापक संगठन करुगा, स्वयं सेवक संघ बनाउंगा! सहायता शिविर खोलूगा! हमारे स्वयंसेवक आतुरो की मरहम पट्टी करेंगे, अन्नहीनो को भोजन देंगे , गृहहीनो को निवास देगें, कर्महीनो को कार्य देगें! क्या तुम पूछते होकि सब यज्ञों के लिए धन कहाँ से आयेगा? सुनो, संकल्प की दृढ़ता के आगे धनाभाव कभी बाधक नहीं होता है! धन तो स्वयं बरसेगा! प्रभु तो यज्ञेच्छु के लिए मरुस्थल में प्याऊ के समान हो जाते हैं,वे स्वयं प्यासे को पानी पहुचाने की, भूखे को भोजन पहुचाने की , रोगार्त को औषध पहुचाने की व्यवस्था करते हैं! मुझ पूरु की पालन पूरण करने की भिक्षा झोली भी वे स्वयं ही भरेगे और मै उनका दूत बनकर भिक्षा बांटने के लिए द्वार द्वार पर पहुचूगा! मेरा यज्ञ सफल होकर ही रहेगा! मन्त्र का भाव है कि–मुझ यज्ञिय भावना रखने वाले की सहायता प्रभु मरुस्थल के प्याऊ के समान अवश्य करेंगे!
सुमन भल्ला