हे प्रभु! तेरी महिमा का गान कहाँ तक करें, तेरे कर्तृत्व महान है!
हे प्रभु! तेरी महिमा का गान कहाँ तक करें, तेरे कर्तृत्व महान है!
मंत्र :– (त्वमेतदधारय:कृष्णासु रोहिणीषु च! परुष्णीषु रु शत् पय:!)
ऋग्वेद ८! ९३! १३!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(त्वम कृष्णासु रोहिणीषु च परुष्णीषु रु शत् पय: अधारयत्), हे इन्द्र परमात्मन्! तूने कृष्णा और रोहिणी परुषणियो में चमकीले रस को निहित किया है!
व्याख्या——– हे परमात्मन्! तुम्हारी महिमा का मैं कहाँ तक गान करूँ? तुम्हीं ने सब शरीरों को रचा हैऔर तुम्ही ने प्रकृति के पदार्थों को रचा है! और तुम्ही ने विविध प्राणियों को रचा है! वेद कहता है कि तुमने कृष्ण और रोहिणी परुषणियो में चमकीले रस को निहित किया है! शरीर में परुष्णी रक्तवाहिनी नाडियो का नाम है, क्योंकि वे पर्ववर्ती होती है! विभिन्न शाखाओं में कटकर टेढ़ी मेढ़ी होती हुई शरीर में फैली रहती है, ये दो प्रकार की होती है!एक कृष्णा अर्थात मलिन रक्त वाली नीली नाडिया और दूसरी रोहिणी अर्थात शुद्ध रक्त वाली लोहिनी नाडिया ! इन द्विविध नाडियो में हे परम प्रभु! तुम्ही चमकीले रक्त रुप पय को प्रवाहित करते हो! इसके अतिरिक्त शरीरस्थ इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाडिया भी क्रमशः रोहिणी और परुष्णी कहलाती है! इनमें तुमने प्राणरुप पय को निहित किया है! प्रकृति में पर्वतों से निकलकर भूमि पर बहने वाली नदियाँ परुष्णी कहलाती है, क्योंकि वे भी पर्ववती होकर बहती है! ये नदियाँ तटों का कर्षण करने या कृषि में सहायक होने के कारण कृष्णा और तटों पर वृक्ष वनस्पतियाँ उगाने के कारण रोहिणी कहलाती है! काले और रोहित वर्ण के जल वाली नदियों को भी क्रमशः कृष्णा और रोहिणी कहते हैं! हे इन्द्र देव! इन नदियों में तुम्ही चमकीला जल प्रवाहित करते हो! परुष्णी रात्रियो को भी कहते हैं अत:ये कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष रुप पर्वों वाली होती है! ये रात्रियां भी कृष्णा और रोहिणी दो प्रकार की है, एक काली दूसरी चांदनी सी चमकीली!
इनमें भी हे लीलाधर! तुम्हीं ओस – कण रुप पय को या विश्रामदायी तमस् और प्रकाश रुप पय को स्थापित करते हो! पशुओं में परुष्णी गौओं का नाम है क्योंकि वे पर्ववती अर्थात पालन कर्ती होती है! गौओं में कुछ कृष्णा अर्थात काले रंग कीऔर कुछ रोहिणी अर्थात रोहित वर्णा होती है! इनके ऊधसो में भी हे अद्भुत कौशलवाले जगदीश्वर! तुम्ही सफेद चमकीला दूध रुप पय भरते हो! इस प्रकार सृष्टि में सर्वत्र तुम्हारा विलक्षण कर्तृत्व दृष्टिगोचर हो रहा है! जिसके कारण तुम सबसे प्रशंसा और कीर्ति पा रहे हो! हे यशस्वी कलाकार! तुम अपनी कला कृतियों से सदा हमारे मन को मोहते हो! मन्त्र का भाव है कि–प्रभु की महिमा अनन्त है उसका पार नहीं पा सकते हैं! उसकी अनोखी कृति सब को आकर्षित करती है!
सुमन भल्ला