हे प्रभु! हमें ऐश्वर्य के चार समुद्र (चार वेद जो सहस्त्रों रत्नों से भरें है) हमें प्रदान करो!
हे प्रभु! हमें ऐश्वर्य के चार समुद्र (चार वेद जो सहस्त्रों रत्नों से भरें है) हमें प्रदान करो!
मंत्र :– (राय: समुद्रांश्चचतुरो ऽस्मभ्यं सोम विश्वत:!
आ पवस्व सहस्त्रिण:!)
ऋग्वेद ९! ३३! ६!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(सोम अस्मभ्यं राय:सहस्त्रिण:चतुर: समुद्रान् विश्वत: आ पवस्व)
हे सोम परमेश्वर! हमारे लिए ऐश्वर्य के सहस्त्रों रत्नों से परिपूर्ण चार समुद्रों को चारो ओर से प्रवाहित कीजिये!
व्याख्या——– हे परमेश्वर! आप सोम है सकल ऐश्वर्य के दाता है! आप हमें धर्म अर्जित धन दीजिये! इतना धन दीजिये कि धन के चार समुद्र भर जाएं, जिनमें सहस्त्रों रत्न हो! हम धन सम्पत्ति को तुच्छ, हेय, उन्नति में बाधक नहीं समझते हैं, किन्तु उन्नति में साधक, अत एव स्वागत योग्य मानते हैं! धन के बिना मनुष्य पंगु है, धन से सभी कार्य सिद्ध होतें है! अतः मैं आपसे धन की याचना करता हूँ!
पर वेदार्थ की परिसमाप्ति स्थूल अर्थ पर ही नहीं हो जाती! भौतिक धन के अतिरिक्त अन्य ऐश्वर्य भी है, जिनके सहस्त्र रत्नों से भरे चार समुद्रों की समे आकांक्षा है! ज्ञान रुप ऐश्वर्य है, जिसके चार समुद्र चार वेद है, जो सद्विचार रुपी सहस्त्रों रत्नों से भरें पडे हैं! हे सोम प्रभु! आप हमें ज्ञान के अबाध सागर रुपी चारो वेदो का पाण्डित्य प्राप्त कराइये! जिन वेदों में कहीं अध्यात्म विज्ञान के रत्न है कहीं, कृषि के, कहीं राजनीति के, कहीं भौतिक विज्ञान, कहीं चिकित्सा विज्ञान के रत्न है! पुरुषार्थ रुपी ऐश्वर्य है जिसके चार समुद्र है, धर्म, अर्थ काम मोक्ष, जो विविध सत्फल रुप रत्नों से भरपूर है! समाज व्यवस्था रुप ऐश्वर्य है, जिसके चार समुद्र है ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य शूद्र वर्ण जो स्व कर्तव्य पालन द्वारा समाज को अनेक कल्याणों के रत्न प्रदान करते हैं! मानव जीवन रुप ऐश्वर्य है जिसके चार समुद्र है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास रुप चार आश्रम है जो मनुष्य को सहस्त्रोपकार रुप सहस्त्रों रत्नों का दान करते हैं! मनोवृत्ति रुपी ऐश्वर्य है जिसके चार समुद्र है मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा रुप चार वृत्तियाँ, जिनसे चित्त प्रसाद रुप रत्न प्राप्त होते हैं! पूर्ण आयु ऐश्वर्य है, जिसके चार समुद्र है बाल्य, कौमार, यौवन, और जरा ये चार अवस्थाएँ, जो सुख स्वास्थ्य के रत्नों से परिपूर्ण है! अन्त:करण रुपी ऐश्वर्य है, जिसमें चार समुद्र है, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, जो संकल्प अध्यवसाय आदि रत्नों को देते हैं! साधन रुपी ऐश्वर्य है जिसके चार समुद्र है, साम, दाम, दण्ड भेद जो वशीकरण रुप रत्न प्रदान करते हैं! मन्त्र का भाव है कि- हे सोम प्रभु! आप इन समस्त ऐश्वर्यो के रत्नों से भरे चार समुद्र हमारी ओर बहा कर लाइये, जिससे हम अपने जीवन में निरंतर साफल्य और उत्कर्ष प्राप्त करते रहे!
सुमन भल्ला