हे परमात्मा! आपकी महिमा अनन्त एवं अपार है!
हे परमात्मा! आपकी महिमा अनन्त एवं अपार है!
मंत्र :– (सुनीतिभिर्नयसि त्रायसे जनं, यस्तुभ्यं दाशान्न तमंहो अश्नवत्!
ब्रह्मा द्विषस्तपनो मन्युमीरसि, वृहस्पते महि तत् ते महित्वनम्!
ऋग्वेद २/२३/४/
भावार्थ एवं व्याख्या :-
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हे परमात्मा! तू मनुष्य को सुनीतियो से ले चलता है, रक्षित करता है! जो तुझे आत्मसमर्पण करता है, उसे पाप नहीं प्राप्त होता है! तू वेद और ईश्वर के विरोधी का तपाने वाला है, उसके क्रोध का विनाशक है! हे वृहस्पति परमात्मन्! तेरी महिमा अपरंपार है, अनन्त है!
हे परमात्मन्! तुम्हारी महिमा विशाल है, तुम अकेले ही इन विस्तीर्ण सूर्य, चन्द्रमा तारामंडल भूमि आदि लोको के कर्ता धर्ता और वेद ज्ञान के भी प्रकाशक हो, तुम मनुष्य के हृदय में सत्प्रेरणा देकर संकटों से रक्षा कर उत्तम नीतियों से ले चलते हो! यदि आपकी कृपा न प्राप्त हो तो मनुष्य का जीवन विपद् ग्रस्त हो जाये! हे प्रभु! संसार में कितने लोग पाप से लिप्त हो जीवन को नष्ट कर रहे हैं इसका कारण यह है कि वह तुम्हें अपनी जीवन नैय्या का कर्णधार नहीं मानते हैं, जो आपको आत्मसमर्पण करते हैं उनके पास निश्चय ही पाप नहीं फटकता है, विश्व में ईश्वर विरोधियों का जाल बिछा हुआ है, वे नास्तिकता का प्रचार कर रहे हैं, हे प्रभु! तुम उन द्वेष्टाओ को संतप्त करके उनके स्वप्न को धूल में मिला दो! कभी कभी ये द्वेष लोग क्रोध में पागल हो कर आस्तिक जनो पर हिंसा का वार भी कर देतें है, लेकिन आप ऐसे लोगों को क्षण भर विनष्ट कर देते हो!
जब कभी उन पर विपत्ति का पहाड़ टूटता है तो वे अपने क्रोध को भूल कर सहसा तुम्हें याद करते हैं, इस प्रकार तुम ब्रह्म द्वेष्टाओ को संतप्त कर उनकी ब्रह्म विरोधी भावनाओं पर प्रहार कर उन्हें ब्रह्म प्रेमी बना देते हो!
हे ब्रह्मन्! तुम्हारी महिमा अपरंपार है तुम्हारी महिमा अनन्त कोटि की है तुम्हे मेरा बारम्बार कोटिशः नमन है!
सुमन भल्ला