हे आत्मन् सोम! तुम इन्द्र के सखा हो हम तुम्हारे सखा है, क्योंकि इन्द्र के पास पहुचने के लिए पहले तुमसे ही सखित्व स्थापित करना ही होगा!
हे आत्मन् सोम! तुम इन्द्र के सखा हो हम तुम्हारे सखा है, क्योंकि इन्द्र के पास पहुचने के लिए पहले तुमसे ही सखित्व स्थापित करना ही होगा!
मंत्र :– (ऋजु:पवस्य वृजिनस्य हत्या, ऽपामीवां बाध मानो मृधश्च! अभिश्रीणन् पय: पयसाभि गोनाम्,इन्द्रस्य त्यं तव वयं सखाय:!)
ऋग्वेद ९! ९७! ४३!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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हे जीवात्मा सोम! (ऋजु:वृजिनस्य हत्या अमीवां मृध:च अपवाधमान:गोनाम् पयसा पय: अभिश्रीणन् पवस्य) सकल पाप का विनाशक रोग को और हिंसाओ को दूर करता हुआ इन्द्रिय रुप गौओं के दुग्ध के साथ अपने रस को मिलाता हुआ पवित्र कर! (त्वम इन्द्रस्य वयं तव सखाय:) तू परमेश्वर का सखा है और हम तेरे सखा है!
व्याख्या——— हे जीवात्मा! तुम पवमान सोम हो, शुभ प्रेरणा देकर पवित्र कर सकने वाले हो! तु हमें पवित्र करो! तुम सांसारिक कुटिलताओ से प्रभावित न होकर ऋजुगामी और सरल बने रहो! तुम पाप के हत्या बनो हमारा मन और हमारी इन्द्रियाँ यदि पाप विचार या पाप कर्म में प्रवृत्त होने लगे, तो तुम उन्हें उस पथ पर जाने से रोको! यदि समाज में पाप की वृत्ति बढ गयी है, तो तुम उसका हनन करो! यदि हमारे मन में हिंसा वृत्तियाँ जन्म ले रही है और यदि हम आत्महिंसा या पर हिंसा में लिप्त हो गयें है, तो उन वृत्तियों को धक्का देकर हमसे दूर कर दो! हमारी ज्ञानेन्द्रयरुप गौएँ ग्राह्य विषय रुप घास को चरकर जो दर्शन श्रवण आदि से जन्य ज्ञान- दुग्ध मन और बुद्धि को अर्पित करती है, उसमें हे आत्मन्! तुम अपना रस भी मिलाओ और उसे पकाकर इन्द्रियजन्य ज्ञान को विशुद्ध तथा निर्मल कर लो! चक्षु, श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ तो भद्र अभद्र सब प्रकार का दर्शन, श्रवण आदि करती है और भद्र अभद्र जैसा भी ज्ञान दुग्ध वे तुम्हें समर्पित करेगी, उसे उसी रुप में तुम पान कर लोगे, तो तुम आधि-व्याधियो के घर बन जाओगे, अतः इन्द्रियों से आह्रत ज्ञान दुग्ध को अपने रस के मिश्रण से तथा परिपाक से परिशुद्ध करके ही स्वयं पान करो तथा अन्य ज्ञान जिज्ञासुओं को भी पान कराओ! अन्यथा तुम्हारे द्वारा किया गया ज्ञान-प्रसार वैसा ही होगा, जैसे अतिथियों को बिना छना औटाया, तिनकों आदि से मिश्रित दूध पिलाना! उससे न पीनेवाले को तृप्ति मिलेगी, न पिलाने वाले को संतोष!
हे आत्मन् सोम! तुम इन्द्र प्रभु के सखा हो, हम तुम्हारे सखा हो हैं! इन्द्र के पास पहुचने के लिए भी पहले तुमसे ही सखित्व स्थापित करना होता है! यदि हम तुम्हारे सच्चे सखा बन गये, तो अपने सखा के पास तुम हमे स्वत:ही पहुचा दोगे! जब हम आत्मा और परमात्मा दोनों का सख्य पाकर परम संतृप्त हो जायेंगे! आओ हे आत्मन्! हम तुम्हारे प्रति मैत्री का हाथ बढाते है! मन्त्र का भाव है कि-हमे प्रभु का सच्चा सखा बनना होगा तभी हम संतृप्त होकर कल्याण मार्ग के पथिक होगें!
सुमन भल्ला