लेख

यूक्रेनी लोगों के जज्बे का जवाब नहीं!

(विवेक सक्सेना)
यूक्रेन लगभग पूरी तरह से खाली हो चुका है। इसके बावजूद वहां पर अस्पतालों में डाक्टर काम कर रहे हैं। इतने हमलों के बाद भी बिजली उत्पादन व पीने का पानी पहुंचने का काम जारी है। मैं यह तय नहीं कर पाया कि इतने बुरे हालात में भी वहां के लोग काम कैसे कर रहे होंगे। युद्ध में लिप्त यूक्रेनी सेना के जवानों को खाना कौन पहुंचा रहा है। आम आदमी की दिनचर्या कैसे चल रही है। हाल ही में वहां से भारत लौटे मेडिकल के छात्रों के पुन: वहां पहुंच जाने की खबरें पढ़कर बहुत चिंता में पड़ गया।
पिछले कुछ दशकों में जो कुछ भी देखा सुना व अनुभव किया है उसके आधार पर मैं भाजपा और भगवान का मुरीद हो गया हूं। मुझे लगता है कि इस दुनिया में कुछ काम भाग्य के कारण भगवान ही करवाते हैं। मुझे लगता है कंस और रावण को मरवाने के लिए भगवान ने ही दोनों के दिमाग खराब किए थे तभी कंस कृष्ण को मारने पर तुल गया और रावण सीताजी को उठा ले गया। वरना किसमें इतनी हिम्मत थी कि वह उनसे निपट पाता। पहले टीवी पर कोविड की खबरें देख देख कर ऊब गया था फिर जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो लगने लगा था कि यह युद्ध कुछ दिनों में ही समाप्त हो जाएगा। मगर यह तो हनुमानजी की पूंछ की तरह बढ़ता ही जा रहा है। अब तो रूस यूक्रेन पर परमाणु हमला करने की धमकी भी देने लगा है।
मुझे लगता है कि भगवान ने भी कुछ सोच रखा है। सच कहूं तो यह दिए व तूफान की लड़ाई है। यूक्रेन जिस तरह से रूस के हमलों का जवाब दे रहा है वह काबिले तारीफ है। वहां के लोगों का जज्बा व देश भक्ति देखकर मैं दंग हूं। हमारे यहां तो सामान्य आग लगने पर भी फायर ब्रिगेड के पहुंचने में काफी देर लग जाती है। पर वहां तो रोज दर्जनों मिसाइल हमले होने के कारण जबरदस्त नुकसान हो रहा है व आग लग रही है। जब किसी इमारत की आग को बुझाते हुए वहां के फायर कर्मचारी को देखता हूं तो लगता है कि इतने बुरे हालात में रहने के बावजूद भी ये लोग कितनी मेहनत व तत्परता के साथ अपने कामों में जुटे हुए है।
यह देश लगभग पूरी तरह से खाली हो चुका है। इसके बावजूद वहां पर अस्पतालों में डाक्टर काम कर रहे हैं। इतने हमलों के बाद भी बिजली उत्पादन व पीने का पानी पहुंचने का काम जारी है। मैं यह तय नहीं कर पाया कि इतने बुरे हालात में भी वहां के लोग काम कैसे कर रहे होंगे। युद्ध में लिप्त यूक्रेनी सेना के जवानों को खाना कौन पहुंचा रहा है। आम आदमी की दिनचर्या कैसे चल रही है। हाल ही में वहां से भारत लौटे मेडिकल के छात्रों के पुन: वहां पहुंच जाने की खबरें पढ़कर बहुत चिंता में पड़ गया।
जो छात्र वहां लौट रहे हैं उनका कैसा हाल होगा। उनके मां-बाप के दिल पर क्या गुजर रही होगी। वे लोग किन हालत में अपनी जिंदगी बिता रहे होंगे। बड़ी मुश्किल से तो हम लोग उन्हें युद्ध के दौरान वहां से ले आए थे अब वे लोग पुन: उन्हीं हालात में पहुंच गए जिनकी जिम्मेदारी दूसरों की जिंदगी बचाने की है। उनकी खुद की जिंदगी खतरे में पड़ गई है। उनके हालात सोचने पर रात भर नींद नहीं आती है।
कई बार अपने देश के नेताओं की सोच पर भी बहुत आश्चर्य होता है। हमारी सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर के नया विकास कर रही हैं। नए संसद भवन बना रही है। बनारस, उज्जैन में मंदिरों के विकास व निर्माण पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इतनी राशि में तो न जाने कितने मेडिकल कालिज खोले जा सकते है व हमारे बच्चों को बाहर नहीं जाना पड़ता पर हमारा तो ध्यान कहीं और है। हम तो बुलेट ट्रेन चलाना चाहते हैं। जब साल में सिर्फ एक दिन दीपावली की रात को पटाखे जलाने पर हमारी हालत इतनी खराब हो जाती है तो जिस यूक्रेन में इतनी जबरदस्त बमबारी हो रही हैं वहां की हालात कितनी खराब हो गई होगी।
जरा सोचिए कि उन बच्चों की हालत क्या होगी जिन्होंने लगभग आधे साल से स्कूल का मुंह नहीं देखा। घर के पार्क में खेलने नहीं गए। नए कपड़े नहीं पहने। अपने जन्मदिन मनाना तो बहुत दूर की बात है। वे अपने घरों तक से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर देशों में शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। उनके खिलौने से लेकर घर तक बरबाद हो गए हैं।
इसलिए मुझे कई बार लगता है कि कहीं इसमें भी ईश्वर की कुछ भूमिका तो नहीं जिस कारण उसने रूसी राष्ट्रपति पुतिन का दिमाग भ्रष्ट कर दिया है व ताईवान के मुद्दे पर अमेरिका व चीन के बीच टकराव बढ़ा दिया है। करीब दो दशक पहले अमेरिका में बिन लादेन सरीखे आतंकवादी गुटों द्वारा वहां पर टवीन टावर का विमानों से किया गया हमला नजर आता है। इसके बाद ही अमेरिका ने बिन लादेन की हत्या की व अफगानिस्तान में आतंकवादियों से निपटने की आधी अधूरी कोशिश की। क्योंकि बिन लादेन व उसके गुट के आतंकवादियों से निपटने में किसी और देश की हिम्मत नहीं थी पर जिस तरह से यूक्रेन के निर्दोष लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है उसे देखकर मैं बहुत दुखी हूं। देखना यह है कि भगवान की इस पहल का संतोषजनक हल कब मिलता है व एक व्यक्ति के मनमानेपन से लोगों को कब राहत मिली है।

Chauri Chaura Times

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