सोम हमें प्रभु के साथ मिलाने का साधन बने!इस सोम से हम शक्ति दिव्य गुणों व उत्तम ज्ञान का सम्पादन करें- यही साक्षात धर्म है!
(यस्य ते पीत्वा वृषभो वृषायतेऽस्य पीत्वा स्वर्विद:! स सुप्रकेतो अभ्यक्रमीदिषोऽच्छा वाजं नैतश:! ६९३-२
व्याख्या हे सोम! यस्य ते पीत्वा वृषभ:वृषायते जिस तेरा पान करके एक शक्तिशाली पुरुष साक्षात धर्म की भांति आचरण करता है ऐसा तू है! सोम की रक्षा से मनुष्य शक्तिशाली तो बनता है, परन्तु उसकी शक्ति से उसे मदयुक्त करके अधर्म की ओर नहीं ले जाती है! उसकी प्रत्येक क्रिया धर्म के अनुकूल होती है! एवं सोम अपने पान करने वाले को यशस्वी बल प्राप्त कराता है! उसका जीवन पवित्र व मधुर बना रहता है!
अस्य पीत्वा स्व:विद:
सोम का पान करके लोग देवों को – दिव्य गुणों को दैवी सम्पत्ति को प्राप्त करने वाले होते हैं! सोम पान करने वाला व्यक्ति अपने अंदर आसुरी भावनाओं का पोषण नहीं करता! वह द्वेष से दूर रहता है यह उत्तम संकल्पों को प्राप्त कराने वाला है! यह सोम पान करने वाला व्यक्ति सुप्रकेत: अत्यंत प्रकृष्ट ज्ञान वाला होता है! और अक्रमीत् उस प्रभु की ओर गति कर रहा होता है!
यह महान ज्ञान के प्रकाश में निवास करने वाला होता है!
मन्त्र का भाव है कि- जैसे घोड़ा अन्न से शक्ति की ओर बढ़ता है, इसी प्रकार यह सोम पान करने वाला व्यक्ति सोम के द्वारा दिव्य गुणों व उत्तम ज्ञान को प्राप्त करता हुआ प्रभु प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है
सुमन भल्ला
(वेद प्रचारिका महर्षि दयानंद सेवा समिति)