हमारा जीवन व्रतमय, प्रेममय और त्याग मय हो!
हमारा जीवन व्रतमय, प्रेममय और त्याग मय हो!
(ऋजुनीती नो वरुणो मित्रों नयति विद्वान्! अर्यमा देवै: सजोषा:!)
साम २१८- ५
व्याख्या इस द्वन्द्वात्मक संसार में मनुष्य दो प्रकार के मार्गो से चल रहें हैं! एक मार्ग सरलता का मार्ग है और दूसरा कुटिलता का! कैवल्योपनिषद् के अनुसार सर्वं जिह्यं मृत्यु पदं, आजर्वं ब्रह्मण: पदम् कुटिलता मृत्यु का मार्ग है, और सरलता मोक्ष का! इस सरल मार्ग का संकेत ही प्रस्तुत मन्त्र में उपलभ्य है! गत मन्त्र में मेधातिथि ब्रह्म के कीर्तन से जीवन यापन कररहे थे! जो व्यक्ति ब्रह्मस्मरण के साथ क्रियाशील बनता है! वह सरल मार्ग से ही गति करता है, अत: मन्त्र कहते हैं कि न: वरुण:मित्र: अर्यमा ऋजुनीती नयति
हमें वरुण मित्र और अर्यमा सरल मार्ग से ले चलते हैं! वस्तुत: सरलता का मार्ग यह है कि वरुण, मित्र व अर्यमा के सिद्धांतों को जीवन का सूत्र बनाना! वरूण, पानी व व्रतों के बंधन में अपने को बांधने की देवता है! यही सब
वैयक्तिक उन्नतियों का मूलाधार है! मित्र स्नेह की देवता है! प्राणी मात्र से स्नेह करना, सभी में एकत्व देखना, यह विश्व प्रेम उन्नतियों का आधार है
अर्यमा – दान की देवता है! हमारा जीवन दानशील हो! वरुण, मित्र, अर्यमा ये तीन देवता ही त्रिविध उन्नति का मूल बनकर हमारे जीवन को दिव्य बनाते हैं! इन तीनों का विशेषण *विद्वान दिया गया है! विद्वान का अर्थ है समझदार! हमें व्रतों का ग्रहण समझदारी के साथ करना है! मूर्खता से हम शरीर को पीड़ित करते हुए व्रत लेते हैं! और हानि उठाते हैं! मूर्खता से अपात्र को दान देकर हम तामसी दानी बनते हैं! और मूर्खता से स्नेह करते हुए ममत्व में फंसते जाते हैं! हमारे तीनों देवता विद्वान हो अर्थात हम तीनों सिद्धांतों को समझदारी से जीवन में स्थान दे!
ये जीवन के तीनों सिद्धांत
देवै:सजोषा: दिव्य गुणों के साथ समान रुप से प्रीति करते हुए हमारे कल्याण के साधक होते हैं! हम केवल व्रती न बनें, केवल दानी न बनें और केवल प्रेम करने वाले न बने! हमारे जीवन में तीन सिद्धांत सम्मिलित रुप से चलें! ऐसा होने पर इस मंत्र के ऋषि गोतम प्रशस्त इन्द्रियों वाले बनें तभी हम राहूगण त्यागशीलों में गिनती के योग्य समझे जायेंगे!
मन्त्र का भाव है कि- हम सरलता के ऋजु मार्ग पर चलकर व्रत करने वाले, प्रेम युक्त, और त्यागशील बनें