पूर्णिका
यह शब्दों की महफिल है,शब्दों का मायाजाल है।। जिसने सुंदर शब्द चुने हैं, उतना मालामाल है।।
जिसने उकेरा भावों को, शब्दों को ढाल बना करके।
शब्दों की इस माया नगरी में, होता वो निहाल है।।
कभी कहानी, कभी कविता,कभी गीतों में ढल जाते हैं।
भावों को पूर्णिका करे जाहिर, शब्दों का यही कमाल है।।
महकते हैं कभी फूलों से, अश्कों के संग बहते हैं।
अनीति हो अगर कहीं तो, शब्द करते बवाल है।।
परचयी नेह ➖
दिवाली के दीपों के जैसे, जगमग जीवन करते है।
नये रंग भरते हैं इंदु, जैसे रंगों में रंग गुलाल है।।
पूर्णिका कार ✒️डॉ इंदु जैन ‘इंदू’
इंदौर (म.प्र.)