हम इन्द्र की साम गान द्वारा स्तुति करें,और उन्नति करते हुए प्रभु के आशीर्वाद से आनन्दित हो!
हम इन्द्र की साम गान द्वारा स्तुति करें,और उन्नति करते हुए प्रभु के आशीर्वाद से आनन्दित हो!
मंत्र :–(एतो न्विन्द्रं स्तवाम, शुद्धं शुद्धेन साम्ना!
शुद्धैरुक्थैर्वावृध्वांसं, शुद्ध आशीरवान् ममत्तु!!
ऋग्वेद ८! ९७! ७!
पदार्थ एवं अन्वय : –
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(एतो शुद्धं इन्द्र उ शुद्धेन साम्ना स्तवाम) आओ शुद्धं इन्द्र प्रभु की निश्चय ही शुद्धं साम के द्वारा स्तुति करें! (शुद्धै:उक्त:वावृध्वांसं आशीर्वान् शुद्ध:ममत्तु) शुद्ध स्त्रोतों से बढ़ते हुए उन्नति करते हुए स्तोता को आशीर्वाद से युक्त शुद्ध इन्द्र प्रभु आनन्दित करें!
व्याख्या——— आओ हम इन्द्र प्रभु की स्तुति करें! वह प्रभु परम शुद्ध और पवित्र है! उसमें मलिनता का लवलेश भी नहीं है, अत: उनकी स्तुति के लिए पूर्णत:शुद्ध साम संगीत चाहिए! अक्षर मात्रा छन्द, तान, अवरोह, सब दृष्टि से शुद्ध साम के द्वारा शुद्ध प्रभु की अर्चना करें! हमारे शुद्ध संगीत की लहरियां निश्चित ही उन्हें हमारी ओर आकृष्ट कर लायेगी! वे हमारे हृदय में आविर्भूत होकर हमारे संगीत में आनन्द लेते हुए अपने संगीत की भी तान छेड़ देगें! हमारी और उनकी संगीत लहरियां मिलकर एक अद्भुत समा बांध देगी! जिससे तरंगित हुआ हमारा हृदय एक अपूर्व सन् तृप्ति का अनुभव करेगा!! शुद्ध सामगान के अतिरिक्त हम स्वरचित गद्यमय पद्यमय स्त्रोतों के द्वारा भी इन्द्र परमेश्वर का स्तुति गान करें! वे भी रचना और भाव दोनों दृष्टियों से परिशुद्ध होने चाहिए, जिससे शुद्ध प्रभु के हृदय को स्पर्श कर सकें! पूर्ण समर्पण भाव से गान किये गए शुद्ध साम और शुद्ध उक्थ्यो से प्रभु रीझते है और स्तोता की संवृद्धि करते हैं, उत्कर्ष को बढाते है, सब दृष्टि से समुन्नत करते हैं! स्तोता को प्रभु का शुद्ध आशीर्वाद प्रसाद प्राप्त होता है! आशीर्वाद से बढ़कर कोई भी वस्तु उस जगती तल पर नहीं है और वह आशीर्वाद का प्रसाद प्रभु का अमूल्य है, क्योंकि वह कभी असत्य नहीं हो सकता है! वह सदा सफल ही होता है! प्रभु के आशीर्वाद में वह बल है कि अज्ञानी को ज्ञानवान अकर्मण्य को कर्मण्य, पापी को पुण्यात्मा और पतित को सर्वोन्नत कर सकता है! अत: आओ हम भी स्वयं को उन भाग्यशालियों की श्रेणी में लाये, जिन्हें प्रभु के आशीर्वाद का प्रसाद प्राप्त होता है! अपने हृदय से आशीर्वाद की पवित्र धाराएँ बहाते हुए शुद्ध प्रभु हमें आल्हादित और आनन्दमग्न करें! मन्त्र का भाव है कि- प्रभु के आशीर्वाद हमें हर पल आशीर्वाद के रुप में मिलते रहे!
सुमन भल्ला