वेद वाणी

हम अपने पथ से विचलित न होवे!

हम अपने पथ से विचलित न होवे!
मंत्र :– (मा प्रधानमंत्री गाम पथों वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिन:!
मान्य स्थुर्नो अरातय:!
अथर्ववेद १३! १! ४९
व्याख्या :– हे परमेश्वर! हम धनादि की प्राप्त्यर्थ यत्नवान् हुए यज्ञिय पथ से पृथक न होवे! हमारे में अदान भावना स्वार्थ परायणता न ठहरे!
हे प्रभु! आप इतना सामर्थ्य दीजिये कि हम सांसारिक व्यवहार के लिए यज्ञिय पथ का ही अवलंबन ले! जैसे सूर्य चन्द्रमा, वृक्ष, नदियाँ सब परोपकार के लिए ही कार्य करते हैं! गौएँ भी मानव संतान के लिए ही दूध धारण करती है, वैसे ही सज्जन पुरुषों का धन ऐश्वर्य परोपकार या यज्ञार्थ ही होता है!
संसार में ऐसा देखा गया है कि धन कमाने के लिए, सब कुछ शुभ कर्म को करना भूल कर येन केन प्रकारेण श्रीमान होना चाहता है! व्यक्ति यह भूल जाता है कि सब कुछ परमात्मा का ही दिया है, इसलिए उसकी धरोहर समझकर त्याग पूर्वक उसका उपभोग करना चाहिए! (त्यक्तेन भुञ्जीथा:) जानकर उसका उपभोग करो!
हे प्रभु! हम आपसे यह मागते है कि हमारे में कृपणता की प्रवृत्ति न आये! (यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि! तवेत्तत् सत्यमङ्गिरा) आपका यह अटल नियम है कि जो प्रजा के हितार्थ धन ऐश्वर्य को लगाते हैं उन्हें आप और धन देते हैं!
आपकी पवित्र वेद वाणी कहती है कि (ऋतस्य पथा प्रेत) ऋत के मार्ग पर चलो!
जो शाश्वत नियम है, जिनके आधार पर सूर्य नियम से उदय, अस्त होता है ऋतुएँ आती है, फूल खिलते हैं, वैसे ही हमारा जीवन ऋत मार्ग का अनुगामी हो! आप स्वयं यज्ञ रुप हो, सृष्टि यज्ञ को चला रहे हो! हम भी इसी यज्ञिय पथ का अनुगमन करने वाले हो, ऐसी शक्ति और सामर्थ्य प्रदान कीजिये!

सुमन भल्ला_

Chauri Chaura Times

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