नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (वार्ता) देश के कुछ प्रतिष्ठित संगठनों की ओर से तैयार की गयी एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश भर में पुलिस विभाग में महिला अधिकारियों की भारी कमी देखी गयी है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2025 नामक इस रिपोर्ट को सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, ह्यूमन राइट्स इनिशियेटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और आईजेआर के पार्टनर डाटा पार्टनर हाऊ इंडिया लिव्स जैसे भागीदारों ने तैयार किया है। इस तरह की रिपोर्ट को तैयार करने की शुरुआत 2019 में टाटा सन्स ने की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, पुरुष अधिकारियों की तुलना में महिला अधिकारियों की संख्या बहुत कम है। देश में कुल पुलिसकर्मियों की संख्या 20.3 लाख है। इनमें से केवल 2.42 लाख महिला पुलिसकर्मी हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि मौजूदा समय में देश में केवल 960 महिलाएं ही भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी हैं। इसके अलावा, देश में 24,322 महिलाएं गैर-आईपीएस, 1003 डिप्टी एसपी और 2.17 लाख से अधिक महिलाएं कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल पद पर तैनात हैं, यानी 89 प्रतिशत महिलाएं सबसे निचले स्तर पर कार्य कर रही हैं, जबकि केवल 08 प्रतिशत महिलाएं ही अधिकारी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि देश के 78 प्रतिशत पुलिस थानों में अब महिला हेल्प डेस्क उपलब्ध हैं। पुलिस विभाग में अधिकारियों के स्तर पर 28 प्रतिशत पद खाली हैं, वहीं कांस्टेबल स्तर पर यह रिक्ति 21 प्रतिशत है। फॉरेंसिक विभाग में वैज्ञानिक स्टाफ की 49 प्रतिशत और प्रशासनिक स्टाफ की 47 प्रतिशत कमी पाई गई है।
रिपोर्ट में न्याय व्यवस्था के चारों स्तंभ पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया है।
इन क्षेत्रों में कर्नाटक लगातार दूसरे वर्ष देशभर में पहले स्थान पर रहा है। आंध्र प्रदेश दूसरे और तेलंगाना तीसरे स्थान पर, केरल चौथे और तमिलनाडु पाँचवें स्थान पर रहा है। इन दक्षिण भारतीय राज्यों ने संस्थागत क्षमता, संसाधन, विविधता और प्रदर्शन के मापदंडों पर अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, पुरुष अधिकारियों की तुलना में महिला अधिकारियों की संख्या बहुत कम है। देश में कुल पुलिसकर्मियों की संख्या 20.3 लाख है। इनमें से 2.42 लाख महिला पुलिसकर्मी हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि मौजूदा समय में देश में केवल 960 महिलाएं ही भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में हैं। इसके अलावा, देश में 2.17 लाख महिलाएं कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल पद पर तैनात हैं, यानी 89 प्रतिशत महिलाएं सबसे निचले स्तर पर कार्य कर रही हैं, जबकि केवल 08 प्रतिशत महिलाएं ही अधिकारी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि देश के 78 प्रतिशत पुलिस थानों में अब महिला हेल्प डेस्क उपलब्ध हैं। पुलिस विभाग में अधिकारियों के स्तर पर 28 प्रतिशत पद खाली हैं, वहीं कांस्टेबल स्तर पर यह रिक्ति 21 प्रतिशत है। फॉरेंसिक विभाग में वैज्ञानिक स्टाफ की 49 प्रतिशत और प्रशासनिक स्टाफ की 47 प्रतिशत कमी पाई गई है।
जेल व्यवस्था को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि देशभर की जेलों में केवल 25 मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक उपलब्ध हैं। इनमें से एक डॉक्टर 776 कैदी की जांच करता है। इसके अलावा, देश की कुल 1,330 जेलों में 1,215 कानूनी सेवा क्लीनिक कार्यरत हैं।
न्यायपालिका की स्थिति पर रिपोर्ट में कहा गया कि देश में 140 करोड़ की जनसंख्या के लिए केवल 21,285 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जो औसतन प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 15 न्यायाधीश बैठते हैं, जबकि 1987 के लॉ कमीशन की सिफारिश पर प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 50 न्यायाधीश सुझाए गए थे। वर्तमान में उच्च न्यायालयों में 33 प्रतिशत और जिला अदालतों में 21 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। उच्चतम न्यायालय में महिला न्यायाधीश की संख्या कुल न्यायाधीशों की तुलना में केवल छह प्रतिशत ही है, वहीं उच्च न्यायालयों में 14 प्रतिशत और जिला अदालतों में 38 प्रतिशत महिला न्यायाधीश हैं।
रिपोर्ट के अनुसार पुलिस पर प्रति व्यक्ति खर्च 1,275 रुपये, न्यायपालिका पर 182 रुपये, जेलों पर प्रति व्यक्ति 57 रुपये और कानूनी सहायता पर मात्र 6.46 रुपये प्रति व्यक्ति सालाना खर्च होता है। जेल में एक कैदी पर औसतन वार्षिक खर्च 44,110 रुपये खर्च होता है, जबकि आंध्र प्रदेश में 2,67,673 रुपये है।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “न्यायिक प्रणाली की शुरुआत ही जब कमजोर हो, तो आम नागरिक के लिए न्याय पाना एक सज़ा बन जाता है। ”
रिपोर्ट की मुख्य संपादक माया दारुवाला ने कहा, “ न्याय प्रणाली को मजबूत करना अब विकल्प नहीं, बल्कि संवैधानिक आवश्यकता है।”
उन्होंने कहा कि ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025’ जारी करने का उद्देश्य देश की न्याय प्रणाली को व्यवस्थित, विविध और जिम्मेदार बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराना है।