सनातन संस्कृति में किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार केवल एक बार किया जाता है – शंकराचार्य
मथुरा, जगद्गुरु शंकराचार्य अधोक्षजानन्द देव तीर्थ की ओर से यहां जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी को रावण का पुतला दहन रोकने के लिए अध्यादेश जारी करना चाहिये। जिसे बाद में संसद से पारित कराके कानूनी जामा पहनाकर लागू किया जा सकता है। उनकी दलील है कि बार बार रावण का पुतला दहन करना विद्वता का अपमान है।
उन्होंने बयान में कहा कि रावण ब्राह्मण था और न केवल बलवान था बल्कि वेदों का ज्ञाता भी था। उसकी विद्वता के कारण ही रामेश्वरम में समुद्र पर सेतु बनाने के लिए श्रीराम ने उससे पूजन कराया था। राम रावण युद्ध में उसकी मृत्यु के बाद श्रीराम ने लक्ष्मण को उसके अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए भेजा था तथा विभीषण की उपस्थिति में उसका अंतिम संस्कार किया गया था।
शंकराचार्य ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार केवल एक बार किया जाता है। रावण का त्रेता युग में ही कर दिया गया था। अब हर साल उसका पुतला दहन करना न सिर्फ सनातन संस्कृति के प्रतिकूल है बल्कि ब्राह्मणों का भी अपमान है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य की कृति ऐसी है, जिसमें देवत्व भी है और असुरत्व भी है। वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता मनुष्य को अपने अन्दर मौजूद असुरत्व का दहन करने की है। आज के समाज के विघटन का भी मूल कारण मनुष्य द्वारा असुरत्व को महत्व देना है। इसी असुरत्व के कारण रूस और यूक्रेन का युद्ध रूकने का नाम नहीं ले रहा है।
उनका कहना है कि रामलीला के आयोजकों को दशहरा पर अपने भीतर का असुरत्व समाप्त करने का संकल्प दिलाना चाहिये। मानव की आसुरी प्रवृति जब हट जाएगी और दैवी प्रवृत्ति उसका स्थान ले लेगी तो यह धरती स्वर्ग बन जाएगी तथा सारे झगड़े समाप्त हो जाएंगे और सर्वे भवन्तु सुखिनः कथन चरितार्थ होने लगेगा।
शंकराचार्य ने कहा कि रावण के पुतले का दहन कर अनजाने में ही नई पीढ़ी को कुसंस्कार परोसा जा रहा है और एक विद्वान का अपमान करने की शिक्षा दी जा रही है। पुतला दहन से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। सरकार जिस प्रकार स्वच्छ पर्यावरण के लिए वाहनो में स्वच्छ ईंधन का प्रयोग करने या पराली जलाने से रोकने के लिए कानून का सहारा लेती है, उसी प्रकार पुतला दहन को रोकने के लिए भी समाजसेवियों के साथ ही सरकार को भी पहल करनी चाहिए।