प्रभु की कृपा रुपी रिमझिम से मैं मुग्ध और सिक्त हो रहा हूँ!
प्रभु की कृपा रुपी रिमझिम से मैं मुग्ध और सिक्त हो रहा हूँ!
मंत्र :–(श्रण्वे वृष्टेरिव स्वन:, पवमानस्य शुष्मिन:!
चरन्ति विद्युत दिवि!!)
ऋग्वेद ९! ४१! ३!
पदार्थ एवं अन्वय :–
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(श्रण्वे शुष्मिन:पवमानस्य वृष्टे स्वन: इव स्वन:) सुन रहा हूँ बलवान पवित्रता दायक सोम प्रभु का वर्षा की रिमझिम जैसा नाद हो रहा है! (दिवि विद्युत:चरन्ति) हृदयाकाश में बिजलियाँ चमक रही है!
व्याख्या———- आज मेरे आत्मलोक में बरसात छायी हुई है, सोम प्रभु मेघ बनकर बरस रहे हैं! साधारण मेघ भी पवमान होता है, क्योंकि वह पवित्रतादायक निर्मल जल की वर्षा करता है! फिर मेरे सोम पवमान क्यों न हो? उनमें तो यह पवित्रता दायक आनन्द रस भरा है, जो आत्मा और मन के युग युग से संचित पाप को धो देता है! सोम प्रभु शुष्मी है, बलवान, बलियों के बली है, अत: अपनी शरण में आने वाले को आत्मिक बल से परिपूर्ण कर देते हैं! उनसे बरसने वाली बल की वृष्टि निर्बल को बली, असहाय को सुसहाय और उत्साह एवं जागृति से हीन को उत्साही एवं जागरूक बना देती है! अतः मै स्पष्ट रूप से यह अनुभव कर रहा हूँ कि शुष्मी पवमान सोम प्रभु की आनन्दमय रिमझिम वर्षा मेरे अन्तर्लोक में हो रही है! वर्षा की रिमझिम में जो संगीत होता है वैसा ही मेरी आत्मा में उठ रहा है! उस दिव्य संगीत में मैं अपनी सुध बुध खो बैठा हूँ! बल और आनंद की रिमझिम के साथ साथ शीतल मन्द सुगंध प्राण पवन बह कर मेरे मानस में नवीनता और स्फूर्ति उत्पन्न कर रहा है! वर्षा होने पर जैसे भूलोक पर सर्वत्र हरियाली छा जाती है, ऐसे ही मेरा अन्तर्लोक भी सत्य, न्याय, दया, श्रद्धा आदि सद्गुणों की हरियाली से हरा भरा हो गया है! बरसात में जैसे नदियाँ पर्वतों से नीचे मैदानों में बहने लगती है, ऐसे ही मेरी आत्मा के उच शिखरों बरसे हुए सोम प्रभु के दिव्य रस की नदियाँ नीचे अवतरण कर मेरे मन बुद्धि, प्रात इन्द्रियों आदि को आप्लावित कर रही है! बरसाती आकाश में जैसे बिजलियाँ चमकती है, वैसे ही मेरे हृदयाकाश में आज दिव्यता की विद्युते चमकार कर रही है! वे विद्युते मेरे मानस को प्रकाश का सूत्र पकडा रही है! उन क्षणप्रभा विद्युतो से मैं अपने मानस में स्थायी विद्युत धारा को अर्जित कर रहा हूँ! जो जीवन पर्यन्त मुझे ज्योति देती रहेगी! मै मुग्ध हूँ प्रभु वर्षा की रिमझिम पर, मैं मुग्ध हूँ दिव्य विद्युतो की द्युति पर! मन्त्र का भाव है कि– हे सोम प्रभु! ऐसी कृपा करो कि यह बरसात मेरे आत्म लोक में सदा उमडती रहे, सदा मुझे दिव्य बलदायी रस और प्रकाश प्रदान करती रहे!
सुमन भल्ला